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________________ ज्ञानका पीठिका | | řક્ अविरत विषै युगपत् सभवतै हिंसा के प्रत्येक द्विसंयोगी आदि भेदनि का, अर ते भेद जेते होइ ताका वर्णन है । बहुरि पांचवां प्रकार विषै तिन स्थाननि विषै भंग ल्यावने के विधान का वा गुणस्थाननि विषै संभवते भंगनि का, तहाँ अविरत विषे हिंसा के प्रत्येक द्विसंयोगी आदि भंग ल्यावने कौं गणितशास्त्र के अनुसार प्रत्येक द्विसंयोगी, त्रिसंयोगी आदि भंगनि के ल्यावने के विधान का वर्णन है । बहुरि श्रास्रवनि के विशेषभूत जिनि- जिनि भाव तै स्थिति - अनुभाग की विशेषता लीयें ज्ञानावरणादि जुदि- जुदि प्रकृति का बंध होइ तिनका क्रम तै वर्णन है । बहुरि सातवां भावचूलिका नामा अधिकार है । तहा नमस्कारपूर्वक प्रतिज्ञा करि भावनि तै गुणस्थानसज्ञा हो है ऐसे कहि पंच मूल भावनि का, अर इनके स्वरूप का, १ अर तिरेपन उत्तर भावनि का, नर मूल-उत्तर भावनि विषे अक्षसचार विधान ते प्रत्येक परसयोगी, स्वसयोगी, द्विसंयोगी आदि भग जैसे होइ ताका, अर नाना जीव, नाना काल अपेक्षा गुणस्थान विषै संभवते भावनि का वर्णन है । बहुरि एक जीव के युगपत् सभवते भावनि का वर्णन है । तहा गुणस्थाननि विषै मूल भावनि के प्रत्येक, परसयोगी, द्विसयोगी आदि संभवते भगनि का वर्णन है । तहां प्रसग पाइ प्रत्येक, द्विसयोगी, त्रिसयोगी आदि भग ल्यावने के गणितशास्त्र अनुसार विधान वर्णन है । बहुरि गुणस्थाननि विषै मूल भावनि की वा तिनके भगनि की संख्या का वर्णन है । बहुरि उत्तर भावनि के भंग स्थानगत, पदगत भेद ते दोय प्रकार कहे है । तहा एक जीव के एक काल संभवते भावनि का समूह सो स्थान । तिस अपेक्षा जे स्थानगत भंग, तिन विषै स्वसंयोगी भंग के अभाव का अर गुणस्थाननि विषे संभवते श्रपशमिका दिक भावनि का अर प्रदयिक के स्थाननि के भगनि का वर्णन करि तहां संभवते स्थाननि के परस्पर संयोग की अपेक्षा गुण्य, गुणकार, क्षेपादि विधान ते जैसे जेते प्रत्येक भग अर परसंयोगी विषै द्विसंयोगी आदि भंग होइ तिनका, अर तहां गुण्य, गुरणकार, क्षेप का प्रमाण कहि सर्वभंगनि के प्रमाण का वर्णन है । बहुरि जातिपद, सर्वपद भेदकर पदगत भग दोय प्रकार, तिनका स्वरूप कहि गुणस्थाननि विषे जेते जेते जातिपद संभवै तिनका, अर तिनको परस्पर १. ख पुस्तक मे यह पाठ नही है ।
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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