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________________ ४४६ ॥ [ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाया ३१० टोका - ईहा के करने करि ताके पीछे जिस वस्तु की ईहा भई थी, ताका भले प्रकार निर्णय रूप जो ज्ञान, ताकौं अवाय कहिए । जैसे पांखनि का हलावना आदि चिह्न करि यह निश्चय कीया जो वुगलनि की पंकति ही है, निश्चयकरि और किछ नाही; असा निर्णय का नाम अवाय है। तु शब्द करि पूर्वं जो ईहा विषं वांछित वस्तु था, ताही का भले प्रकार निर्णय, सो अवाय है । बहुरि जो वस्तु किछ और है; अर और ही वस्तु का निश्चय करि लीया है, तो वाका नाम अवाय नाही, वह मिथ्याज्ञान है । बहुरि तहां पीछे बार-बार निश्चयरूप अभ्यास ते उपज्या जो सस्कार, तीहि स्वरूप होइ, केते इक काल कों व्यतीत भए भी यादि आवने को कारणभूत जो ज्ञान सो धारणा नाम चौथा ज्ञान का भेद हो है। जैसे ही सर्व इंद्रिय वा भन संबंधी अवग्रह, ईहा, अवाय, धारणा भेद जानने । बहु बहुविहं च खिप्पाणिस्सिदणुत्तं धुवं च इदरं च । तत्थेक्कक्के जादे, छत्तीसं तिसयभेदं तु ॥३१०॥ बहु बहुविधं च क्षिप्रानिःसृदनुक्तं ध्रवं च इतरच्च । तत्रैककस्मिन् जाते, षट्त्रिंशत्त्रिंशतभेदं तु ॥३१०॥ टीका - अर्थरूप वा व्यंजनरूप जो मतिज्ञान का विषय, ताके बारह भेद है - बहु, बहुविध, क्षिप्र, अनिसृत, अनुक्त, ध्रुव, ए छह । बहुरि इतर जे छही इनके प्रतिपक्षी एक, एकविध, अक्षिप्र, निसृत, उक्त, अध्र व ए छह; असे बारह भेद जानने । सो व्यजनावग्रह के च्यारि इंद्रियनि करि च्यारि भेद भए, अर अर्थ के अवग्रह, ईहा, अवाय, धारणा ते पंच इंद्रिय छठा मन करि चौबीस भेद भए। मिलाएं ते अठाईस भेद भए । सो व्यंजन रूप बहु विषय का च्यारि इंद्रियनि करि अवग्रह हो है । सो च्यारि भेद तो ए भए । अर अर्थ रूप बहु विषय का पंच इंद्रिय, छठा मन करि गणे अवग्रह, ईहा, अवाय, धारणा हो है। ताते चौबीस भएं । जैसे एक, बहु विषय संबंधी अठाईस भेद भए । जैसे ही बहुविध आदि भेदनि विषै अठाईस-अठाईस भेद हो हैं। सब कौं मिलाएं बारह विषयनि विर्षे मतिज्ञान के तीन से छत्तीस (३३६) भेद हो है । जो एक विषय विष अठाईस मतिज्ञान के भेद होइ तौ बारह विषयनि
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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