SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 32
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ गोम्मटसार जीवकाण्ड सम्बन्धी प्रकरण २८] पूर्वक वर्णन है । अर वर्तनाहेतुत्व काल के लक्षण का दृष्टांतपूर्वक वर्णन है । अर मुल्य काल के निश्चय होने का, काल के धर्मादिक को कारणपने का, समय, पावली आदि व्यवहारकाल के भेदनि का, तहा प्रसंग पाइ प्रदेश के प्रमाण का, वा अंतर्मुहूर्त के भेदनि का, वा व्यवहारकाल जानने को निमित्त का, व्यवहारकाल के अतोत, अनागत, वर्तमान भेदनि के प्रमाण का, वा व्यवहार निश्चय काल के स्वरूप का वर्णन है। बहुरि स्थिति अधिकार विप सर्व अपने पर्यायनि का समुदायल्प अवस्थान का वर्णन है। बहुरि क्षेत्राधिकार विप जीवादिक जितना क्षेत्र रोके, ताका वर्णन है। तहा प्रसंग पाठ तीन प्रकार आधार वा जीव के समुद्घातादि क्षेत्र का वा संकोच विस्तार शक्ति का वा पुद्गलादिकनि की अवगाहन शक्ति का वा लोकालोक के स्वरूप का वर्णन है । बहुरि संख्याधिकार विष जीव द्रव्यादिक का वा तिन के प्रदेशनि का, वा व्यवहार काल के प्रमाण का, द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव मान करि वर्णन है । बहुरि स्थान स्वरूपाधिकार विपै (द्रव्यनि का वा ) द्रव्य के प्रदेशनि का चल, अचलपने का वर्णन है । बहुरि अणुवर्गणा आदि तेईस पुद्गल वर्गणानि का वर्णन है । तहां तिन वर्गणानि विप जेती-जेती परमाणू पाइए, ताका आहारादिक वर्गणा ते जो-जो कार्य निपजै है ताका जघन्य, उत्कृष्ट, प्रत्येकादि वर्गणा जहां पाईए ताका, महास्कव वर्गणा के स्वरूप का, अणुवर्गणा आदि का वर्गणा लोक विप जितनी जितनी पाइए ताका इत्यादि का वर्णन है । वहुरि पुद्गल के स्थूल-स्थूल आदि छह भेदनि का, वा स्कंध, प्रदेश, देश इन तीन भेदनि का वर्णन है । बहुरि फल अधिकार विप धर्मादिक का गति आदि साधनरूप उपकार, जीवनि के परस्पर उपकार, पुद्गलनि का कर्मादिक वा सुखादिक उपकार, तिनका प्रस्नानरादिक लिए वर्णन है। तहा प्रसंग पाइ कर्मादिक पुद्गल ही है ताका, अर सर्मादिक जिस-जिन पुद्गल वर्गणा ते निपजे है ताका, अर स्निग्ध-रूक्ष के गुणनि के अननि करि जैन पुद्गल का संबंध हो है, ताका वर्णन है । जैसे पट द्रव्य का वर्णन पनि नहा काल विना पंचास्तिकाय हैं, ताका वर्णन है । वहुरि नव पदार्थनि का जन विग जीव-यजीव का ती पद् द्रव्यनि विपै वर्णन भया । वहुरि पाप जीव नीवनि का वर्णन है । तहा प्रसग पाइ चौदह गुण-स्थाननि विषै जीवनि का
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy