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________________ | गोम्मटमार जायका मायापी प्रकरण भेद, तहां मृत्र अर प्रथमानुयोग का एक-एक भेट, अर पूर्वगत के चीदह भट, लिका के पांच भेद, इन सबनि के जुदा-जुदा पदनि का प्रमाण पर इन विप जी-जो व्यान्यान पाइए, नाकी सूचनिका का कथन है । तहां प्रसंग पाड तीर्थकर की दिव्यध्वनि होने का विधान, अर बर्द्धमान स्वामी के समय दश-दश जीव अंत.कृत केवली पर अनुत्तरगामी भए तिनकानाम पर तीन सी तिरेसठि कुवाटनि के धारकनि विर्ष केई कुवादीनि के नाम अर सप्त भंग का विधान, अर अक्षरनि के स्थान-प्रयत्नादिक, अर बारह भाषा पर प्रात्मा के जीवादि विशेषगा इत्यादि वने कथन हैं। वहरि सामायिका यादि चौदह प्रकीर्णकनि का स्वरूप वर्णन है । बहुरि श्रुतनान की महिमा का वर्णन है। " बहुरि अवविज्ञान का वर्णन विपं निरुक्ति पूर्वक स्वरूप कहि, ताके भवप्रत्ययगुणप्रत्यय भवनि का, अर ते भेद कौनक होय, कान आत्मप्रदेशनि ते उपजे ताका, अर तहां गुग्णप्रत्यय, के छह भेदनि का, तिनविप अनुगामी, अननुगामी के तीन-तीन भदनि का वर्णन है । बहुरि सामान्यपन अवधि के देशावधि, परमावधि, सर्वावधि भेदनि का, अर तिन विपे भवप्रत्यय-गुणप्रत्यय के संभवपने का, अर ए कौनक होडताका, अर नहा प्रतिपाती, अप्रतिपाती, विशेप का, अर इनके भेदनि के प्रमाण का, वर्णन है । वहुनि जघन्य देशाववि का विषयभूत व्य, क्षेत्र, काल, भाव का वर्णन करि द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव अपेक्षा द्वितीयादि उत्कृष्ट पर्यत क्रम ते भेद होने का विधान, अर तहां डव्यादिक के प्रमाण का अर सर्व भंदनि के प्रमाण का वर्णन है । तहा प्रसंग पाइ प्र.वहार, वर्ग, वर्गणा, गुणकार इत्यादिक का अनेक वर्णन है । अर तहां ही यंत्र-काल अपेक्षा तिस देशावरि के उगणीम कांडकनि का वर्णन है । वहरि परमाववि के विपयभूत द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव अपेक्षा जघन्य ते उत्कृष्ट पर्यन्त क्रम ते भेद होने का विधान, वा तहां द्रव्याटिक का प्रमाण वा सर्व भेदनि के प्रमाण का वर्णन है। तहां प्रसंग पाइ संकलित वन ल्यावने का अर "इच्छिदरासिच्छेद" इत्यादि दोय करणमूत्रनि का आदि अनेक वर्णन है। बहरि सर्वाववि अभेद है । ताके विपयभूत द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव का वर्णन है । ब्रहरि जघन्य देणाबवितै सर्वार्वाय पर्यत द्रव्य पर भाव अपेक्षा भेदनि की समानता का वर्णन है । बहुरि नरक विप अवधि का वा ताके विपयभूत क्षेत्र का, अर मनुप्य, तिर्यत्र विर्ष जघन्य-उत्कृष्ट अवधि होने का, अर देव विपं भवनवासी, व्यंतर, ज्योनिपानि के अवधिगोचर क्षेत्रकाल का, सीधर्मादि टिंकनि विप क्षेत्राटिक का, वा द्रव्य का भी वर्णन है।
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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