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________________ २८६ ] [ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा १४४-१४५ सत्तदिणाछम्मासा, वासपुधत्तं च बारसमुहुत्ता । पल्लासंखं तिरहं वरमवरं एगसमयो दु || १४४ ॥ उपशमसूक्ष्माहारे, वैविक मिश्रनरापर्याप्ते | सास सम्यक्त्वे मिश्र, सांतरका मार्गणा भ्रष्ट || १४३ || सप्तदिनानि षण्मासा, वर्षपृथक्त्वं च द्वादश मुहूर्ताः । पल्यासंख्यं त्रयाणां वरमवरमेकसमयस्तु ।। १४४ ॥ टोका नाना जीवनि की अपेक्षा विवक्षित गुणस्थान वा मार्गणास्थान ने छोडि, अन्य कोई गुणस्थान वा मार्गगास्थान में प्राप्त होइ, बहुरि उस ही विवक्षित गुणस्थान वा मार्गरणास्थान को यावत् काल प्राप्त न होइ, तिसकाल का नाम अंतर है | सो उपशम सम्यग्दृष्टी जीवनि का लोक विषै नाना जीव अपेक्षा अंतर सात दिन है । तीन लोक विपे कोऊ जीव उपशम सम्यक्त्वी न होइ तो उत्कृष्टपनें सात ताई न होइ, पीछे कोऊ होय ही होय । ऐसे ही सब का अंतर जानना । बहुरि सूक्ष्म सांपराय संयमी, तिनिका उत्कृष्ट अंतर छह महीना है । पीछे को होय ही होय । बहुरि प्रहारक पर ग्राहारकमिश्र काययोगवाले, तिनिका उत्कृष्ट अंतर वर्ष पृथक्त्व का है । तीन ते ऊपर अर नव ते नीचे पृथक्त्व संज्ञा है, तातै यहां तीन वर्ष के ऊपर अर नव वर्ष के नीचे अतर जानना । पीछे कोई होय ही होय । वहुरि वैक्रियिकमिश्र काययोगवाले का उत्कृप्ट अंतर बारह मुहूर्त का है, पीछे कोऊ होय ही होय । बहूरि लब्धि पर्याप्तक मनुष्य पर सासादन गुणस्थानवर्ती जीव अर मिश्र गुगास्थानवर्ती जीव. इनि तीनों का अंतर एक-एक का पल्य के श्रसंख्यातवे भाग मात्र जानना, पीछे कोई होय ही होय । स ए सांतर मार्गणा श्राठ है । इनि सवनि का अन्य अंतर एक समय जानना । पढमुवसमसहिदाए, विरदाविरदीए चोद्दसा दिवसा । विरदीए पण्णरसा, विरहिदकालो दु बोधव्वो ॥ १४५ ॥
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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