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________________ २० ] गोम्मटगार जीयकाण्ड सम्बो प्रकरण अपेक्षा लिऐ मार्गणानि विष काल का, अर अंतर का कथन करि छदा गति मागंगा अधिकार है। तहां गति के लक्षण का, अर भेदनि का अर च्यारि भनि के निक्तिः लिए लक्षणनि का, अर पाँच प्रकार तियंच, च्यारि प्रकार मनुष्यनि का पर मिद्धनि का वर्णन है । बहुरि सामान्य नारकी, जुदे-जुदे सात पृथ्वीनि के नारकी, पर पांच प्रकार तिर्यच, च्यारि प्रकार मनुष्य, अर व्यंतर, ज्योतिपी, भवनवामी, नौधर्मादिक देव, सामान्य देवराशि इन जीवनि की संख्या का वर्णन है। तहां पर्याप्त मनुष्यनि की संख्या कहने का प्रसग पाइ "कटपयपुरस्थवण" इत्यादि मूत्र करि ककागटि अक्षररूप अंक वा बिंदी की संख्या का वर्णन है । बहुरि सातमा इंद्रियमार्गणा अधिकार विष - इंद्रियनि का निरनि, लिए लक्षण का, अर-लब्धि उपयोगरूप भावेद्रिय का, अर वाह्य अभ्यन्तर भेट लिए निवृत्ति-उपकरणरूप द्रव्येन्द्रिय का, अर इन्द्रियनि के स्वामी का, अर तिनके विषयभूत क्षेत्र का, अर तहां प्रसंग पाइ सूर्य के चार क्षेत्रादिक का अर इद्रियनि के ग्राकार का वा अवगाहना का, अर अतीद्रिय जीवनि का वर्णन है । बहुरि एकेन्द्रियादिकनि का उदाहरण रूप नाम कहि, तिनकी सामान्य संख्या का वर्णन करि, विणेपपने सामान्य एकेन्द्री, अर सूक्ष्म बादर एकेद्री, बहुरि सामान्य अस, पर वेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौइंद्रिय, पचेन्द्रिय इन जीवनि का प्रमाण, अर इन विष पर्याप्त-अपर्याप्त जीवनि का प्रमाण वर्णन है। बहुरि आठमां कायमार्गणा अधिकार विष- काय के लक्षण का वा भेदनि का वर्णन है । वहुरि पंच स्थावरनि के नाम, अर काय, कायिक जीवरूप भेद, अर वादर, सूक्ष्मपने का लक्षणादि, अर शरीर की अवगाहना का वर्णन है। वहुरि वनस्पती के साधारण प्रत्येक भेदनि का, प्रत्येक के सप्रतिष्ठित-अप्रतिष्ठित भेदनि का, अर तिनकी अवगावहना का अर एक स्कध विषै तिनके शरीरनि के प्रमाण का, अर योनीभूत वीज विषै जीव उपजने का,वा तहासप्रतिष्ठित-अप्रतिष्ठित होने के काल का, अर प्रत्येक वनस्पती विषै सप्रतिष्ठित-अप्रतिष्ठित जानने की तिनके लक्षण का, वहुरि साधारण वनस्पती निगोदरूप तहां जीवनि के उपजने, पर्याप्ति धरने, मरने के विधान का, अर निगोद शरीर की उत्कृष्ट स्थिति का, अर स्कध, अंडर, पुलवी, आवास, देह, जीव इनके लक्षण प्रमाणादिक का अर नित्यनिगोदादि के स्वरूप का वर्णन है । वहुरि त्रस जीवनि का अर तिनके क्षेत्र का वर्णन है। वहरि वनस्पतीवत् औरनि के शरीर विषै सप्रतिष्ठित-अप्रतिष्ठितपने का, अर स्थावर, त्रस
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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