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________________ १४६ ] [ गोम्मटसार जोवकाण्ड गाया ४६ वहुरि द्वितीय समय तै लगाइ द्विचरम समय पर्यत समय सवधी अंत- अंत के खण्ड अर प्रथम समय संवधी प्रथम खंड विना अन्य सर्व खण्ड, ते अपने-अपने नीचले समय संबंधी किसी ही खण्डनि करि समान नाही, ताते प्रसदृण हैं । सो इहां द्वितीयादि द्विचरम पर्यंत समय सबंधी अंत- अंत खण्डनि की ऊर्ध्वरचना कीएं अर नीचे प्रथम समय के द्वितीयादि ग्रंत पर्यंत खण्डनि की तिर्यक्रचना कीए हल के आकार रचना हो है । ताते याकी लागल रचना कहिए । यह ग्रक सहष्टि अपेक्षा लागल रचना ४० ૪૨ ५६ ५५ ५४ ५३ ५२ ५१ ५० ४६ ४६ ४७ ४६ ४५ ४४८३४२ बहुरि जघन्य उत्कृप्ट खंड अर ऊपरि नीचे समय संबंधी खण्डनि की अपेक्षा कहे सदृश खण्ड, तिनि खडनि विना श्रवशेप सर्व खण्ड अपने ऊपर के अर नीचले समय सवधी खण्डनि करि यथासंभव समान जानने । व विशुद्धता के अविभागप्रतिच्छेदनि की अपेक्षा वर्णन करिए हैं । जाका दूसरा भाग न होड़ - जैसा शक्ति का अंश, ताका नाम अविभागप्रतिच्छेद जानना । तिनकी अपेक्षा गणना करि पूर्वोक्त श्रधःकरण के खडनि विषे ग्रल्पबहुत्वरूप वर्णन करें हैं । तहां व प्रवृत्तकरण के परिणामनि विषै प्रथम समय संबंधी जे परिणाम, तिनके खंडनि विषे जे प्रथम खंड के परिणाम, ते सामान्यपने असंख्यात लोकमात्र है । तथापि पूर्वोक्त विधान के अनुसारि स्थापि, भाज्य भागहार का यथासंभव अपवर्तन किये, संख्यात प्रतरावली का जाको भाग दीजिये, ऐसा असंख्यात लोक मात्र है । ते ए परिणाम श्रविभागप्रतिच्छेदनि की अपेक्षा जघन्य, मध्यम, उत्कृष्ट भेद लिये | तहां एक विक सूच्यंगुल का असंख्यातवां भाग का घन करि तिसही का वर्ग को गुण जो प्रमाण होइ, तितने परिणामनि विषै जो एक वार पट्स्थान होइ, तो सख्यात प्रतरावली भक्त असंख्यात लोक प्रमाण प्रथम समय सबंधी प्रथम खंड के परिणामनि विषै केती बार षट्स्थान होइ ? ऐसे त्रैराशिक करि पाए हुए असंख्यात लोक वार पट्स्थाननि कौं प्राप्त जो विशुद्धता की वृद्धि, तीहि करि वर्धमान हैं । भावार्थ - श्रागै ज्ञानमार्गणा विषै पर्याय समास श्रुतज्ञान का वर्णन करतें जैसे अनंतभाग वृद्धि ग्रादि पदस्थानपतित वृद्धि का अनुक्रम कहेंगे, तैसे इहां अध. प्रवृत्तकरण सम्बन्धी विशुद्धतारूप कपाय परिणामनि विषै भी अनुक्रम ते अनन्तभाग,
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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