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________________ सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटीका ] [ १३१ तहां प्रथम एक स्थापि प्रथम प्रस्तार अपेक्षा उपरि ते संरंभादि तीन करि गुणी, इहा प्रतस्थान का ग्रहरण है, तातै अनक्ति कौ न घटाए, तीन ही भए । बहुरि इनको तीन योग करि गुरिण, इहां वचन, काय ए दोय अनकित घटाए सात भए । बहुरि इनकी कृतादि तीन करि गुणि, अनुमोदन अनकित स्थान घटाए, वीस हो है । बहुरि इनको च्यारि कषाय करि गुणिए, एक लोभ अनकित स्थान घटाए गुन्यासी हो है । औसा पूछया हुवा आलाप गुण्यासीवा है; जैसे ही अन्य उद्दिष्ट साधने । बहुरि इस ही प्रकार ते द्वितीय प्रस्तार अपेक्षा भी नष्ट - उद्दिष्ट समुद्दिष्ट साधने । बहुरि पूर्वे जो विधान का है, ताते या गूढयंत्र असे करने । प्रथम प्रस्तार अपेक्षा जीवाधिकरण का गूढयंत्र । लोभ ४ क्रोध १ कृत O मन o वचन १२ समारभ ३६ द्वितीय प्रस्तार पेक्षा जीवाधिकरण का गूढयत्र । सरभ समारंभ १ २ सरभ o मन ० मान २ कारित ४ कृत o क्रोध O वचन ३ कारित & मान माया ३ अनुमोदित ८ २७ काय २४ आरभ ७२ श्रारभ ३ काय ६ मोद १८ माया ५४ लोभ ८ १ तहा नष्ट पूछे तो जैसे च्यारो पक्तिनि के जिस-जिस कोठा के अक मिलाए पूछया हुवा प्रमाण मिलै, तिस तिस कोठा विषै स्थित भेदरूप आलाप कहना । जैसे साठिवां आलाप पूछै तौ च्यारि, आठ, बारह, छत्तीस अक जोडे साठि अक होइ ।
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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