SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 10
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २८५ दहमा के नाम मातरमार्गणा, उसका स्वरूप व संख्या २८५ - २९७ नारकादि गतिमार्गरण का स्वरूप २६७-१०० सिद्धगति का स्वरूप ३०१ नारकी जीवो की सख्या का कथन ३०२०-३०८ सातवां अधिकार इन्द्रिय मार्गणा प्ररूपणा मंगलाचरण, इन्द्रिय मन्द की निरक्ति इन्द्रिय के भेद एकेन्द्रियादि जीवो की इन्द्रिया उनका विषय तथा क्षेत्र इन्द्रिय रहित जीवो का स्वरूप एकेन्द्रियादि जीवो की मस्या आठवां अधिकार काय मार्गणा - प्ररूपणा मंगलाचरण, काय मार्गणा का स्वरूप व भेद स्वावराय की उत्पत्ति का कारण शरीर के भेद, लक्षण और सख्या प्रतिष्ठित, प्रतिष्ठित जीवो का स्वरूप साधारण वनस्पति का स्वरूप अनकाय का प्ररूपण पनि ग्रन्थ जीवों के प्रतिष्ठित राय तथा मकाय जीवो के शरीरा ३०६-३२१ नव अधिकार. योगमार्गना-प्रदपणा [२] सामान्य रक्षा, विशेष ग इसके जन्य उदाहरण वचन नदीमा वार ३०१-३१२ ३१३-३१७ ३१८ ३१६-३२१ ३२२-३५२ ३३६-३४० ** पृथ्वीरादि जीवो की ३४१-३५१ रु ३२२ ३२३ ३२४-३२० ३२८-३३० १३०-३३७ ३३७-३३८ ३३६ ३५२-४०५ ३५२-३५५ axs-axe 250 योग केवी से मनोग सभावना काययोग का स्वरूप व नेद योग रहित श्रात्मा का रूप शरीर में कर्म नोकर्म का भेद प्रदारिकादि परीर के ममचद्ध की सत्या विमोचय का स्वरूप श्रदारिक पाच शरीरो की उत्कृष्ट स्थिति ओदारिक समयश्य का स्वरप औदारिकादि शरीर विषयक ग्यारहवां अधिकार. कपायमार्गरणा प्ररूपणा २६१-३६२ ३६३-३७० ३७०-३७१ ३७१ विशेष कथन ३६-४०० योग मार्गगाग्रो मे जीवी की संख्या ४०१-४०% मंगलाचरण तथा रुपाय के निरुक्तिसिद्ध लक्षण, शक्ति की अपेक्षा क्रोवादि के ४ भेद तथा दृष्टा गतियों के प्रथम समय मे शौचादि का नियम कपाय रहित जीव बायोका स्थान पानी का यन्त्र, कपाय की अपेक्षा जीवनख्या दसवां अधिकार : वेदमारणा-प्ररूपणा ४०६-४१३ तीन वेद और उनके कारण व भेद ४०६-४०८ वेद रहित जीव वेद की प्रपेक्षा जीवो की मस्या ४०१-४१० ४१०-४१३ बारहवां अधिकार ज्ञानमासा-प्ररूपणा BUR-BUY २७५-३७६ ३७६-१८८ ३८८-३८६ ४१४-४३५ ज्ञान का नियक्तिमिद्ध नामान्य लक्षण, पाच ज्ञानो का शायोमिक शाकि रूप से विभाष, मिथ्याज्ञान का कारण और स्वामी विज्ञान का कारण और मनपर्वम जान का स्वामी, स्प्टांत द्वारा तीन ४१४-४११ ४१६-४२० ४२१-४३० ४३०-४३५ ४३६-५७१ ४३६-४१८
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy