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________________ सामायिक प्रवचन चारित्र 'सम' कहलाते है, उनमे श्रयन यानी प्रवृत्ति करना सामायिक है । २८ (३) 'सर्व जीवेषु मंत्री साम, साम्नो प्राय = लाभ सामाय, स एव सामायिकम् । सब जीवो पर मैत्रीभाव रखने को 'साम' कहते है, त साम का लाभ जिससे हो, वह सामायिक है । सावद्य (४) 'सम सावद्ययो गपरिहार निरवद्योगानुष्ठानरूपजीव - परिणामः तस्य श्राय =लाभ. समाय., स एव सामाधिकम् । योग अर्थात् पापकार्यो का परित्याग और निरवद्ययोग अर्थात् हिसा, दया समता ग्रादि कार्यो का आचरण, ये दो जीवात्मा के शुद्ध स्वभाव 'सम' कहलाते हैं । उक्त 'सम' की जिसके द्वारा प्राप्ति हो, वह सामायिक है । (५) 'सम्यक् शब्दार्थ समशब्द सम्यगयन वर्तनम् समयः स एव सामायिकम् ।" 'सम' शब्द का अर्थ अच्छा है और अयन का अर्थ ग्राचरण है । ग्रस्तु, श्रेष्ठ आचरण का नाम भी सामायिक है । (६) 'समये कर्त्तव्यम् सामायिकम् । ग्रहिंसा आदि की जो उत्कृष्ट साधना समय पर की जाती है, वह सामायिक है । उचित समय पर करने योग्य आवश्यक कर्तव्य को सामायिक कहते है । यह अन्तिम व्युत्पत्ति हमे सामायिक के लिए नित्यप्रति कर्तव्य की भावना प्रदान करती है । ऊपर शब्द - शास्त्र के अनुसार भिन्न-भिन्न व्युत्पत्तियो के द्वारा भिन्न-भिन्न अर्थ प्रकट किए गए है, परन्तु जरा सूक्ष्मदृष्टि से ग्रवलोकन करेगे, तो मालूम होगा कि सभी व्युपत्तियो का भाव एक ही है, और वह है 'समता ।' श्रतएव एक शब्द मे कहना चाहे, तो 'समता' का नाम सामायिक है । राग-द्व ेष के प्रसगो मे विषम न होना, ग्रपने ग्रात्म-स्वभाव मे 'सम' रहना ही, सच्चा सामायिक व्रत है । १ अहवा साम मित्ती तत्थ ओ तेण वत्ति सामाओ । अहवा सामस्साओ लाओ सामाइय नाम ।। ३४८१ ।। गुरणारणलाभो त्ति जो समाओ मो ||३४८०॥ मामाइयमुभय विद्धि भावाओ । अहवा सम्मस्साओ लाभो सामाइय होइ || ३४८२ ॥ २ अहवा समस्स आओ ३ सम्ममओ वा समओ
SR No.010073
Book TitleSamayik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1969
Total Pages343
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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