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________________ सामायिक प्रवचन मीमासक आदि दर्शन केवल आचार --- क्रियाकाण्ड से ही मोक्ष स्वीकार करते है । परन्तु जैनधर्म ज्ञान और क्रिया दोनो के सयोग से मोक्ष मानता है, किसी एक से नही । यह प्रसिद्ध बात है कि रथ के दो चक्रो मे से यदि एक चक्र न हो तो रथ की गति नही हो सकती। और एक चक्र छोटा हो तब भी रथ की गति भली-भाँति नही हो सकती । एक पाँख से कोई भी पक्षी प्रकाश मे नही उड़ सकता है। भगवान् महावीर ने स्पष्ट बतलाया है कि 'यदि तुम्हे मोक्ष की सुदूर भूमिका तक पहुँचना है, तो अपने जीवनरथ मे ज्ञान और सदाचरण - रूप दोनो ही चक्र लगाने होगे । केवल लगाने ही नही, दोनो चक्रो मे से किसी एक को मुख्य या गौरण बना कर भी काम नही चल सकेगा, ज्ञान और प्राचरण दोनो को ठीक बराबर सुदृढ रखना होगा । ज्ञान और क्रिया की दोनो पाँखो के बल पर ही, यह आत्म-पक्षी, निश्रयस की ओर ऊर्ध्वगमन कर सकता है ।" २० जीवन के चार प्रकार * स्थानाग - सूत्र ( ४ ) मे प्रभु महावीर ने चार प्रकार के मानवजीवन बतलाए हैं (१) एक मानव - जीवन वह है जो सदाचार के स्वरूप को तो पहचानता है, परन्तु सदाचार का आचरण नही करता । (२) दूसरा वह है, जो सदाचार का आचरण तो अवश्य करता है, परन्तु सदाचार का स्वरूप भली-भाँति नही जानता । आँखे बन्द किए गति करता है । (३) तीसरा वह व्यक्ति है, जो सदाचार के रूप को यथार्थ रूप से जानता भी है और तदनुसार आचरण भी करता है । (४) चौथी श्र ेणी का वह जीवन है, जो न तो सदाचार का स्वरूप ही जानता है और न सदाचार का कभी आचरण ही करता है । वह लौकिक भाषा मे अन्धा भी है, और पद-हीन पगु भी । उक्त चार विकल्पो मे से केवल तीसरा विकल्प ही, जो सदाचार को जानने और ग्राचरण करने रूप है, मोक्ष की साधना को सफल बनाने वाला है । ग्राध्यात्मिक जीवन यात्रा के लिए ज्ञान के नेत्र और आचरण के पैर प्रतीव श्रावश्यक है ।
SR No.010073
Book TitleSamayik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1969
Total Pages343
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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