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________________ २७६ सामायिक-सूत्र काफी मत-भेद मिल रहे है। प्रतिक्रमण-सूत्र के टीकाकार आचार्य नमि पचाग नमन-पूर्वक पढने का विधान करते है । दोनो घुटने, दोनो हाथ और पाँचवा मस्तक-इनका सम्यक् रूप से भूमि पर नमन करना, पचाग-प्रणिपात नमस्कार होता है। परन्तु, प्राचार्य हेमचन्द्र और हरिभद्र आदि योग-मुद्रा का विधान करते है। योगमुद्रा का परिचय ऐर्यापथिक-पालोचना सूत्र के विवेचन मे किया जा चुका है। राजप्रश्नीय तथा कल्पसूत्र आदि आगमो मे, जहाँ देवता आदि, तीर्थ कर भगवान् को वन्दन करते है और इसके लिए 'नमोत्थरण' पढते है, वहाँ दाहिना घुटना भूमि पर टेक कर और बाँया खडा करके दोनो हाथ अजलि-बद्ध मस्तक पर लगाते है। आज की प्रचलित परम्परा के मूल मे यही उल्लेख काम कर रहा है। वन्दन के लिए यह आसन, नम्रता और विनय भावना का सूचक समझा जाता है। __ आजकल स्थानक वासी सम्प्रदाय मे 'नमोत्थुग' दो बार पढा जाता है। पहले से सिद्धो को नमस्कार किया जाता है, और दूसरे से अरिहन्तो को। पाठ-भेद कुछ नहीं है, मात्र सिद्धो के 'नमोत्थुण' मे जहाँ 'ठाणं सपत्ताण' बोला जाता है, वहाँ अरिहन्तो के 'नत्मोत्थुरण' मे 'ठाण सपाविउ कामाण' कहा जाता है । 'ठाण सपाविउकामारण' का अर्थ है—'मोक्ष पद को प्राप्त करने का लक्ष्य रखने वाले जीवन्मुक्त श्री अरिहन्त भगवान अभी मोक्ष मे नही गए है, शरीर के द्वारा भोग्य-कर्म भोग रहे है, जब कर्म भोग लेगे तब मोक्ष मे जाएंगे, अत वे मोक्ष पाने की कामना वाले है । कामना का अर्थ यहाँ वासना नही है, आसक्ति नहीं है । तीर्थ कर भगवान् तो मोक्ष के लिए भी आसक्ति नही रखते । उनका जीवन तो पूर्णरूप से वीतराग-भाव का होता है। अत यहाँ कामना का अर्थ आसक्ति न लेकर ध्येय, लक्ष्य, उद्देश्य आदि लेना चाहिए। आसक्ति और लक्ष्य मे वडा भारी अन्तर है। वन्धन का मूल आसक्ति मे है, लक्ष्य मे नही। उपर्युक्त प्रचलित परम्परा के सम्बन्ध मे कुछ थोडी-बहुत विचारने की वस्तु है। वह यह है कि दो 'नमोत्थुग' का विधान
SR No.010073
Book TitleSamayik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1969
Total Pages343
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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