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________________ सामायिक सूत्र हम भगवान् के सच्चे पुजारी बन रहे हैं और हमारी पूजा मे अपूर्व बल एव शक्ति का सचार हो रहा है । २२४ प्रभु के दरबार मे यही पुष्प लेकर पहुँचो | प्रभु को इन से असीम प्रेम है । उन्होने अपने जीवन का तिल-तिल इन्ही पुष्पो की रक्षा करने के पीछे खर्च किया है, विपत्ति की ग्रसह्य चोटो को मुस्कुराते हुए सहन किया है । प्रत जिसको जिस वस्तु से प्रत्यधिक प्रेम हो, वही लेकर उसकी सेवा मे उपस्थित होना चाहिए । पूजा व्यक्तित्व के अनुसार होती है । ग्रन्यथा पूजा नही, पूजा का उपहास है । पूज्य, पूजक और पूजा का परस्पर सम्वन्ध रखने वाली योग्य त्रिपुटी ही जीवन का कल्यारण कर सकती है, अन्य नही । पितामह भीष्म शर-शय्या पर पड़े थे । तमाम शरीर मे वाण विधे थे, परन्तु उनके मस्तक मे वारण न लगने से सिर नीचे लटक रहा था । भीष्म ने तकिया मागा । लोग दौड़े और नरम-नरम रूई से भरे कोमल तकिये लाकर उनके सिर के नीचे रखने लगे । भीष्म ने उन सबको लौटाते हुए कहा " अर्जुन को बुलाओ !” अर्जुन श्राए । भीष्म ने कहा – “बेटे अर्जुन । सिर नीचे लटक रहा है, तकलीफ हो रही है, जरा तकिया तो लाभो ।” चतुर अर्जुन ने तुरन्त तीन वाण मस्तक में मार कर वीरवर भीष्म की स्थिति के अनुकूल तकिया लगा दिया । पितामह ने प्रसन्न होकर आशीर्वाद दिया । क्योकि, अर्जुन ने जैसी शय्या थी, वैसा ही तकिया दिया । उस समय वीरवर भीष्म को आराम पहुँचाने की इच्छा से उन्हे रूई का तकिया देना उन्हे कष्ट पहुँचाना था, और था उनकी महिमा के प्रति अपने मोहू-ज्ञानादर्श! की कैसी उपासना होनी चाहिए, इसके लिए यह कहानी ही पर्याप्त होगी, अधिक क्या आरोग्य और समाधि * लोगस्स मे जो 'ग्रारुग्ग' शब्द प्राया है, उसके दो भेद है-द्रव्य और भाव । द्रव्य आरोग्य यानी ज्वर श्रादि रोगो से रहित होना । भाव आरोग्य यानी कर्म रोगो से रहित होकर स्वस्थ होना, श्रात्म-स्वरूपस्थ होना, सिद्ध होना । सिद्ध दशा पाकर ही दुर्दशा से छुटकारा मिलेगा । प्रस्तुत - सूत्र मे श्रारोग्य से मूल अभिप्राय, भाव
SR No.010073
Book TitleSamayik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1969
Total Pages343
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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