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________________ मामायिक प्रवचन यह है कि प्रत्येक ग्रात्मा क्षरण-क्षरण मे नष्ट होती रहती है और उस से नवीन-नवीन आत्मा उत्पन्न होती रहती है । यह ग्रात्मानो का जन्म-मरण - रूप प्रवाह अनादि काल से चला रहा है । जव आध्यात्मिक साधना के द्वारा आत्मा को समूल नष्ट कर दिया जाए, वर्तमान आत्मा नष्ट होकर ग्रागे नवीन ग्रात्मा उत्पन्न ही न हो, तब उसकी मोक्ष होती है, दुखो से छुटकारा मिलता है । न रहेगी आत्मा चोर न रहेगे उससे होने वाले सुख-दुख | न रहेगा वाँस और न बजेगी बाँसुरी । ६ श्रार्यसमाज 2 ग्राजक्ल के प्रचलित पथो मे ग्रार्यसमाजी श्रात्मा को सर्वथा अल्पज्ञ मानते है । उनके सिद्धान्तानुसार ग्रात्मा न कभी सर्वज्ञ होती है और न वह कर्म - बन्धन से छुटकारा पाकर कभी मोक्ष ही प्राप्त कर सकती है । जव शुभ कर्म होता है तो मरने के बाद कुछ दिन मोक्ष मे आनन्द का भोग प्राप्त होता है । और जव शुभ कर्म होता है, तो इधर उधर की दुर्गतियो मे दुख का भोग प्राप्त होता है । ग्रात्मा अनन्तकाल तक यो ही ऊपर-नीचे भटकती रहेगी । सदा के लिए ग्रजर, अमर, अखण्ड शान्ति कभी नही मिलेगी । देवसमाज * देवसमाजी ग्रात्मा को प्रकृति-जन्य जड पदार्थ मानते है, स्वतन्त्र चैतन्य नही । वे कहते है कि "ग्रात्मा भौतिक है, त वह एक दिन उत्पन्न होती है और नष्ट भी हो जाती है, ग्रात्मा अजर, अमर, सदाकाल स्थायी नही है । जव आत्मा ही नही है, तो फिर मोक्ष का प्रश्न ही कहाँ रहा ?" प्राध्यात्मिक साधना का चरम लक्ष्य, आर्यसमाज के समान देवसमाज के ध्यान मे भी नही है । जैन दर्शन का समाधान आत्मा परिणामी नित्य है भारत के उक्त विभिन्न दर्शनो मे से जैन दर्शन ग्रात्मा के सम्बन्ध मे एक पृथक् ही धारणा रखता है, जो पूर्णतया स्पष्ट एव ग्रसदिग्ध है । जैन धर्म का कहना है कि "ग्रात्मा परिरणामी -- परिवर्तनशील
SR No.010073
Book TitleSamayik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1969
Total Pages343
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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