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________________ सामायिक सूत्र १९० की सूक्ष्म से सूक्ष्म पीडा का भी उसी प्रकार दुख अनुभूत होता है, जैसे कि प्रत्येक प्राणी को अपनी पीडा का । कहते है कि रामकृष्ण परमहंस इतने दयालु थे कि लोगो को हरी घास पर टहलते देखकर भी उनका हृदय वेदना से व्याकुल हो उठता था । किसी स्थावर प्रारणी को पीडा देना भी उनको सह्य नही होता था । जीवन, आाखिर जीवन ही है, वह छोटा क्या श्रौर बडा क्या ? हिंसा का सूक्ष्म रूप ** हिंसा का अर्थ केवल किसी को जीवन से रहित कर देना ही नही है। हिंसा का दायरा बहुत विस्तृत है। किसी भी जीव को किसी भी प्रकार की मानसिक, वाचिक तथा कायिक पीडा पहुँचाना हिंसा है । इसके लिए आप जरा 'अभिया, वत्तिया' यादि सूत्रगत शब्दो पर नजर डालिए । ग्रहिंसा के सम्वन्ध मे इतना सूक्ष्म विश्लेषण प्रापको और कही मिलना कठिन होगा। किसी जीव को एक जगह से दूसरी जगह रखना और बदलना भी हिसा है । किसी भी जीव की स्वतन्त्रता मे किसी भी तरह का अन्तर डालना 'हिंसा' है । परन्तु एक बात ध्यान मे रहे । यहाँ जो एक स्थान से दूसरे स्थान पर उठाकर रखने का निषेध किया है, वह दुर्भावना से उठाने का निषेध है । किन्तु, दया की दृष्टि से किसी पीडित एव दुखित जीव को यदि धूप से छाया मे अथवा छाया से धूप मे ले जाना हो, किंवा सुरक्षित स्थान मे पहुँचाना हो, तो वह हिंसा नहो, प्रत्युत ग्रहिंसा एव दया ही होती है । प्रस्तुत सूत्र मे 'लेसिया' और 'सघट्टिया' पाठ श्राता है । 'लेसिया' का अर्थ सव जीवो को भूमि पर मसलना और सघट्टिया का अर्थ जीवो को स्पर्श करना है । इस पर प्रश्न होता है कि जब रजोहरण से चीटी यादि छोटे जीवो को पूजते है, तब क्या वे भूमि पर घसीटे नही जाते र स्पर्श नही किए जाते ? रजोहरण के इतने बड़े भार को वे सूक्ष्मकाय जीव विचारे किस प्रकार सहन कर सकते है ? क्या यह हिंसा नही है ? उत्तर मे कहना है कि हिंसा अवश्य होती है । परन्तु, यह हिंसा, वडी हिंसा की निवृत्ति के लिए ग्रावश्यक है । अपने मार्ग से जाते हुए चीटी श्रादि जीवो को व्यर्थ ही पूजना, रोकना, स्पर्श करना
SR No.010073
Book TitleSamayik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1969
Total Pages343
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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