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________________ सामायिक सूत्र १७६ मन मे उत्साह जागृत न हो, ससारी कामो का मोह न छटे, तो यह गुरुदेव का अपमान है । और, जहाँ इस प्रकार का अपमान होता है, वहाँ श्रद्धा कैसी और भक्ति कैसी ? ग्राजकल के उन साधको को इस शब्द पर विशेष लक्ष्य देना चाहिए, जो गुरुदेव के यह पूछने पर कि भाई, व्याख्यान ग्रादि सुनने कैसे नही ग्राए ? तव कहते हैं कि ग्रजी, काम मे लगा रहा. इसलिए नही ग्रा सका । और कुछ तो यह भी कहते हैं, ग्रजी, काम-वाम तो कुछ नही था, यो ही ग्रालस्य मे पडे रह गए । यह अपमान नही तो क्या है 'कल्लाणं' का संस्कृत रूप कल्याण है । कल्याण का स्थूल अर्थ क्ष ेम, राजी खुशी होता है । परन्तु हमे इसके लिए जरा गहराई मे उतरना चाहिए । श्रमर कोष के सुप्रसिद्ध टीकाकार एव महावैयाकरण भट्टोजी दीक्षित के सुपुत्र श्री भानुजी दीक्षित कल्याण का अर्थ प्रातस्मरणीय करते हैं । 'कल्ये प्रात काले व्यते, 'प्ररण' शब्दे' (स्वा-प-से-) - श्रमर-कोष १/४/२५ उक्त संस्कृत व्युत्पत्ति का हिन्दी मे यह अर्थ है - प्रात काल मे जो पुकारा जाता है, वह प्रात स्मरणीय है । कल्य + ग्ररण ये दो शब्द है । 'कल्य' का ग्रर्थ प्रात काल है, और 'रण' का अर्थ कहना, बोलना है । यह अर्थ बहुत ही सुन्दर है । रात्रि के गहन अन्धकार का नाश होते ही ज्यो ही सुनहरा प्रभात होता है श्रोर मनुष्य निद्रा से जाग उठता है, तब वह पवित्र ग्रात्माओ का शुभ नाम सर्वप्रथम स्मरण करता है । गुरुदेव का नाम इसके लिए पूर्णतया उचित है। अत गुरुदेव सच्चे प्रर्थो मे कल्याण रूप हैं । कल्याण का एक और ग्रर्थ ग्राचार्य हेमचन्द्र करते हैं । उनका अर्थ भी सुन्दर है । 'फल्य नीरुजत्वमणतीति' - ग्रभिवानचिन्तामरिण १ / ८६ कल्य का अर्थ है - नीरोगता - स्वस्थता । जो मनुष्य को नीरोगता प्रदान करता है, वह कल्याण है । यह ग्रर्थ श्रागम के टीकाकारो को भी ग्रभीष्ट है
SR No.010073
Book TitleSamayik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1969
Total Pages343
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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