SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 130
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ । ११० सामायिक-प्रवचन तक वह मनपर दृढ संस्कार उत्पन्न नही कर सकता। भारतीय सस्कृति मे तीन वचन ग्रहण करना, आज भी दृढता के लिए अपेक्षित माना जाता है । राजनीति मे भी शपथ ग्रहण करते समय तीन वार शपथ दुहराई जाती है । आध्यात्मिक दृष्टि से भी तीन बार पाठ पढते समय मन, योगत्रय की दृष्टि से क्रमश. तीन बारप्रतिज्ञा के शुभ भावो से भर जाता है और प्रतिज्ञा के प्रति शिथिल सकल्प तेजस्विता-पूर्ण एव सुदृढ हो जाता है। गुरुदेव को वन्दन करते समय तीन बार प्रदक्षिणा करने का विधान है। तीन वार ही 'तिक्खुत्तो' का पाठ आज भी उस परम्परा के नाते पढा जाता है। आप विचार सकते है कि "प्रदक्षिणा भक्ति-प्रदर्शन के लिए एक ही काफी है, तीन प्रदक्षिणा क्यो ? वन्दन-पाठ भी तीन बार वोलने का क्या उद्देश्य ?" आप कहेंगे कि यह गुरु-भक्ति के लिए, अत्यधिक श्रद्धा व्यक्त करने के लिए है । तो, मैं भी जोर देकर कहूँगा कि "सामायिक" का प्रतिज्ञा-पाठ तीन बार दुहराना भी, प्रतिज्ञा के प्रति अत्यधिक श्रद्धा और दृढता के लिए अपेक्षित है।" इस विषय मे तर्क के अतिरिक्त क्या कोई प्रागम प्रमाण भी है ? हाँ, लीजिए । व्यवहारसूत्र-गत, चतुर्थ उद्देश के भाष्य मे उल्लेख प्राता है'सामाइय तिगुणमट्ठगहण च" -~गा० ३०९ प्राचार्य मलयगिरि, जो आगम-साहित्य के समर्थ टीकाकार के रूप मे विद्वत्ससार मे परिचित है, वे उपर्युक्त भाष्य पर टीका करते हुए लिखते है "त्रिगुणं श्रीन वरान् सामायिकमुच्चरयति ।" उक्त वाक्य का अर्थ है-सामायिक पाठ तीन बार उच्चारण करना चाहिए । व्यवहार भाष्य ही नही, निशीथ-चूरिण भी इस सम्बन्ध मे यही स्पष्ट विधान करती है ____ "सेहो सामाइय तिक्खुत्तो कड्ढइ ।" अस्तु, प्राचीन भाष्यकारो एव टीकाकारो के मत से भी सामायिक प्रतिज्ञा पाठ का तीन बार उच्चारण करना उचित है। यह ठीक है
SR No.010073
Book TitleSamayik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1969
Total Pages343
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy