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________________ १०८ सामायिक-प्रवचन सामायिक में हृदय की पवित्रता सामायिक के पाठो मे प्रारम्भ से ही हृदय की कोमल एव पवित्र भावनाओ को जागृत करने का प्रयत्न किया गया है । छोटे-से-छोटे और बडे-से-बडे किसी भी प्राणी को यदि कभी ज्ञात या अज्ञात रूप से किसी तरह की पीडा पहुची हो, तो उसके लिए ईर्यापथिक आलोचना-सूत्र मे पश्चात्ताप-पूर्वक 'मिच्छामि, दुक्कड' दिया जाता है। तदनन्तर अहिंसा और दया के महान् प्रतिनिधि तीर्थकर देवो की स्तुति की गई है, और उसमे आध्यात्मिक शान्ति, सम्यग्ज्ञान और सम्यक् समाधि के लिए मङ्गल कामना की है। पश्चात् 'करेमि भते' के पाठ मे मन से, वचन से और शरीर से पाप-कर्म करने का त्याग किया जाता है । साम्य-भाव के आदर्श को प्रतिदिन जीवन मे उतारने के लिए सामायिक एक महती अध्यात्मिक प्रयोग-शाला है । सामायिक मे आर्त और रौद्र ध्यान से अर्थात् शोक और द्वप के संकल्पो से अपने आपको सर्वथा अलग रखा जाता है और हृदय के अरण-अण मे मैत्रीकरुणा आदि उदात्त भावनायो के आध्यात्मिक अमृत रस का सचार किया जाता है । आप देखेगे, सामायिक की साधना करनेवाले के चारो ओर विश्व-प्रेम का सागर किस प्रकार ठाठे मारता है । यहा द्वेष, घृणा आदि दुर्भावनाओ का एक भी ऐसा शब्द नहीं है, जो जीवन को जरा भी कालिमा का दाग लगा सके । पक्षपात-रहित हृदय से विचार करने पर ही सामायिक की महत्ता का ध्यान आ सकेगा।
SR No.010073
Book TitleSamayik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1969
Total Pages343
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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