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________________ चारित्र विभूषण श्री १०८ श्री विवेकसागरजी महाराज का शुभाशीर्वाद मोक्षमार्गस्य नेतारं भेत्तार कर्मभूभृताम् । ज्ञातारं विश्वतत्त्वानां वंदे तद्गुणलब्धये ॥१॥ जो मोक्ष मार्ग के नेता हैं, कर्मरूपी पर्वतों के भेदन करने वाले हैं और जीवजीवादि समस्त तत्त्वों को जानने वाले हैं ऐसे समस्त तीर्थङ्करों को तथा इस युग के अंतिम शासक श्री देवाधिदेव महावीर भगवान् को उन्हीं के गुरणों की प्राप्ति के लिये सिद्ध-भक्ति पूर्वक त्रिधा नमोऽस्तु करके उन्हीं के शासन को गरगधर रूप से धारण करने वाले ४ ज्ञान के धारी श्रुतवली श्री गौतम स्वामी को तथा इस युग में अध्यात्म धारा के प्राद्य प्रवर्तक श्री कुन्दकुन्द महान् प्राचार्य को नमस्कार करके, इस भव के उद्धार करनेवाले तथा सन्मार्ग में प्रेरित करने वाले ज्ञानमूर्ति श्री ज्ञानसागरजी महाराज को नमस्कार करता हुप्रा धर्म-प्रेमी बन्धुनों को आशीर्वाद दिये बिना नहीं रह सकता; जिनके सहयोग से मेरा धर्म ध्यान निर्विघ्न हो रहा है । 1 मैं यथाशक्ति प्रध्यात्म धारा का आनन्द अविकल रूप से लेता हूँ फिर भी इस मन को अंकुशयुक्त करने के लिये जिनवाणी सेवा सम्बन्धी कार्य में लगाता ही रहता हूँ ! कई बार स्वाध्याय करते हुये सुके श्री योगीन्दुदेव विरचित परमात्म प्रकाश ग्रंथ बहुत ही सुन्दर लगा, उसके गम्भीर भाव हृदयतलस्पर्शी हैं, उसकी मूल टीका संस्कृत में कितनी सुन्दर है यह उसके स्वर्गीय पं० दौलतरामजी के भाषानुवाद से ज्ञात ही है; किन्तु जैसे में संस्कृत को नहीं समझता वैसे और भी कई भाई ऐसे होंगे जिनको मूल गाथा और सरस भाषावाद के बीच में संस्कृत की गुत्थी मालूम देती होगी, खास करके उन भाइयों को लक्ष्य में रखकर तथा उस प्रति के बड़े खर्च को जो सहन नहीं कर सकते उनका भी लक्ष्य रखकर इसी आनन्द को सर्वजन प्राप्त कर सकें इसे 'लघु परमात्म प्रकाश' नाम देकर प्रकाशित करने में प्रेरक बन रहा हूँ । साथ ही पं० विद्याकुमारजी सेठी के इस प्राग्रह से
SR No.010072
Book TitleParmatma Prakash evam Bruhad Swayambhu Stotra
Original Sutra AuthorYogindudev, Samantbhadracharya
AuthorVidyakumar Sethi, Yatindrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages525
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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