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________________ १८० स्वयंभू स्तोत्र टोका एक काल जान लिया व जिसका ज्ञान सबमें फैल गया ऐसा जगत्व्यापी अरहन्त ही विष्णु कहलाता है । छन्द त्रोटक जिन मल्लिमहर्षि प्रकाश किया, सब वस्तु सुबोध प्रत्यक्ष लिया । तब देव मनुज जग प्राणि सभो, कर जोड़ नमन करते सुखधी ॥। १०६ ।। उत्थानिका - भगवान के शरीर व वचन की महिमा कहते हैं यस्य च मूर्तिः कनकमयीव स्वस्फुरदाभाकृतपरिवेषा | वागपि तत्त्वं कथयितुकामा स्थात्पदपूर्वा रमयति साधून् ॥ १०७ ॥ अन्वयार्थ -- ( यस्य च कनकमयी इव मूर्तिः ) जिन मल्लिनाथ का शरीर मानो सुवर्ण से रचा गया है ऐसा सुन्दर सुवर्णमई है [ स्वस्फुरदाभाकृतपरिवेषा ] जिसकी फैलती हुई दीप्ति से शरीर के चारों तरफ भामण्डल बन गया है ( वाक् अपि ) जिनकी वाणी भी [ तत्त्व कथयितुकामा ] यथार्थ वस्तु के स्वरूप को कहने को समर्थ है तथा वह वाणी ( स्यात्पदपूर्वा ) स्यात् या कथंचित् शब्द के साथ में चिह्नित होती हुई ( साधून साधुओं को ( रमयति ) रंजायमान करती है । 1 भावार्थ - - श्री मल्लिनाथ तीर्थंकर के शरीर का वर्ण सुवर्णमई था - केवलज्ञान अवस्था में वह परमोदारिक होगया था । उसकी दीप्ति कोटिसूर्य से अधिक चमकदार थी तथा उसका प्रभामण्डल रच गया था । भगवान की वारणी भी यथार्थ वस्तु के स्वरूप को प्रकाश करने वाली थी । जिस वारणी को सुनकर साधुजन परम प्रफुल्लित होगए थे । भिन्न भिन्न अपेक्षा से वस्तु के स्वरूप को विचारते हुए जब साधुगरण स्यात् शब्द को कथन पहले लगाकर विचार करते थे तब उनको नित्य अनित्य एक अनेक आदि अनेकांत मई पदार्थ का आनन्द श्राता था तथा वे आत्मा को अनात्मा से भिन्न समझकर आत्मा में मगन हो परम आनन्द को पाते थे । अरहन्त परमात्मा का स्वरूप श्री पदमचन्द्र मुनि कृत धम्मरसायण में कहा है संपुण्णचन्दवयणो जडमरडविवज्जियो णिराहरणो । पहरणजुवइमिमुक्को संतियरो होइ परसप्पा ॥। १२२ ।
SR No.010072
Book TitleParmatma Prakash evam Bruhad Swayambhu Stotra
Original Sutra AuthorYogindudev, Samantbhadracharya
AuthorVidyakumar Sethi, Yatindrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages525
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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