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________________ श्री अरनाथ स्तुति केवलज्ञान अवस्था में आप परमौदारिक शरीर में कोटि सूर्य की दीप्ति से भी अधिक प्रकाशमान रहे । आपने आयु कर्म को जीत लिया । परभव के लिये आपने आयु न बांधी। प्रापका अब किसी शरीर में जन्म न होगा। वास्तव में मरण वही है जो फिर जन्म करावे । आप तो शरीर त्यागने पर परम निर्वाण के भाजन परम सिद्ध होंगे। इस तरह आपने जगत विजयो यमराज के मद को भी चूर्ण कर डाला। प्राप्तस्वरूप में प्रापका स्वरूप कहा हैजन्ममृत्युजरारोगाः प्रदग्धा ध्यान वह्निना । यस्यात्मज्योतिषां एको सोऽस्तु वैश्वानरः स्फुटम् ।।४३॥ भावार्थ-जिसकी आत्मज्योति की राशिमई ध्यानरूपी अग्नि से जन्म मरण जरा रोग बिलकुल जला दिये गये सोही प्रभु प्रगटपने अग्निस्वरूप हैं । वास्तव में आपने यमराज व उसके मित्रों को सर्वथा नाश कर डाला इसलिए आप यमराज के विजयी परम योद्धा हैं। पद्धरी छन्द यमराज जगत को शोककार, नित जरा जन्म हूँ सता धार । तुम यम विजयी लख हो उदास, निज कार्य करन समरथ न तास । ६३।। उत्थानिका-आगे कहते हैं कि भगवान में मोहादिक का क्षय हुमा यह बात कैसे जानी जाती है भूषावेषायुधत्यागि विद्यादमदयापरम् । रूपमेव तवाचष्टे धीर ! दोषविनिग्रहम् ॥६४ ॥ - अन्वयार्थ -(धीर)हे परम क्षमावान् अरनाथ भगयन् ! (तव) प्रापका (भूपावेपायुद्धत्यागि) पासूषण.वस्त्र व शस्त्रादि से रहित तथा ( विद्यादमदयापरम् ) निर्मल ज्ञान, शांत भाव व अपूर्व दया को झलकाने वाला(रूपं एव) शरीर का रूप ही (दोपविनिग्रहम् ) प्रापने पोहादि दोषों का क्षय कर डाला है इस बात को ( पाचटे ) प्रगट कर रहा है । भावार्थ -श्री जिनेन्द्र के शरीर का रूप मोहादि घातिया कर्मो के नाश कर लेने पर पूर्ण ध्यानमय पद्मासन या कायोत्सर्ग आसन में रहता है । उस रूप में किसी विकारी वेष का संसर्ग नहीं होता है न वहाँ कोई वस्त्र का सम्बध होता है न किसी प्रकार का भाभूषण होता है, न कोई खड़ग, बरट्री, लकड़ी आदि शस्त्र का सम्बन्ध होता है। वह
SR No.010072
Book TitleParmatma Prakash evam Bruhad Swayambhu Stotra
Original Sutra AuthorYogindudev, Samantbhadracharya
AuthorVidyakumar Sethi, Yatindrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages525
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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