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________________ १२२ स्वयंभू स्तोत्र टोका हैं कि यह वही है जो पहले थी तब तो इस अभेदपने के ज्ञान से यह वस्तु सामान्य है, वही है, द्रव्यरूप दूसरी नहीं है ऐसा सिद्ध होता है । और जब हम यह जानते हैं कि यह दूसरी दशा में दिखती है, इसकी पर्याय पहले कुछ और थी अब कुछ और हो गई है. तब इस भेदपने के ज्ञान से यह सिद्ध होता है कि यह वस्तु विशेषरूप है, पर्याय स्वरूप है । इस तरह सामान्य तथा विशेष दोनों ही स्वभाव एक ही वस्तु में हरएक समय सिद्ध होते हैं परन्तु ये दोनो धर्म एक दूसरे की अपेक्षा से ही कहे जाते हैं । अर्थात् जहां सामान्य धर्म होगा वहां विशेष की अपेक्षा रहेगी, जहां विशेष होगा वहां सामान्य की अपेक्षा रहेगी। इन दोनों धर्मों के परम मंत्री है, कभी पदार्थ से अलग हो ही नहीं सकते। यह वस्तुस्वभाव है । 'गुरणपर्ययवत् द्रव्यं द्रव्य का गुण व पर्यायपना स्वभाव ही है-गुण सहभावी रहता है इसलिये सामान्य है । पर्याय क्रमवर्ती होती है इसलिये विशेष है। दोनों में से एक को न मानेंगे तो वस्तु की सिद्धि ही नहीं हो सकती है। दोनों धर्मों का एक जगह रहना विरोधरूप नहीं है । जैसे हमारे ज्ञान में जब कोई मतिज्ञान झलकता है अर्थात् घटज्ञान व पट ज्ञान होता है तब यही अनुभव होता है कि मैं घट को जानता हूं । अर्थात् वह मतिज्ञान अपने को भी जान रहा है और पर को भी जान रहा है। अर्थात् हरएक प्रमाणज्ञान स्व और पर दोनों को प्रकाश करने वाला होता है । प्रमाण का लक्षण ही परीक्षामुख में यही कहा है स्वापूर्वार्थव्यवसायात्म ज्ञानं प्रमाणं। वही प्रमाण है जो ज्ञान अपने को और अपूर्व व अनिश्चित पदार्थ को भी निश्चित फरे। जैसे दोपक स्वपर-प्रकाशक है वैसे ज्ञान भी स्वपर-प्रकाशक है। जैसे ज्ञान में स्य और पर दोनों को जानने की शक्ति एक साथ रह सकती है,विरोध नहीं पाता है,वैसे हरएक वस्तु में सामान्य तथा विशेष धर्म रहते हैं, विरोध नहीं पाता। पंचाध्यायी में कहा है-- स विभक्तो द्विविध: स्यात् सामान्यात्मा विगैपम्पदन । तत्र विवक्ष्यो मुन्यः स्यात् स्वभावोऽय गुणो हि परमावः ।। ३८ ।। भावार्थ-पदार्थ दो प्रकार का है-मामान्य तथा विशेषरूप, उनमें से जिसको कहने को मुल्यता होगी वह मुख्य हो जायगा। और जिसकी अपेक्षा न होगी वह भाव गौरा हो नायगा।
SR No.010072
Book TitleParmatma Prakash evam Bruhad Swayambhu Stotra
Original Sutra AuthorYogindudev, Samantbhadracharya
AuthorVidyakumar Sethi, Yatindrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages525
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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