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________________ m १२० स्वयंभू स्तोत्र टीका उत्थानिका-यदि नित्यपना अनित्यपना की अपेक्षा रखेगा व अनित्यपना नित्यपने की अपेक्षा करेगा तब सर्व नय सर्व की अपेक्षा करेंगे। तब अमुक नय के द्वारा समझने योग्य पदार्थ अमुक है इस अवस्था का लोप हो जायगा । उसका समाधान करते हैं यथैकश: कारकमर्थसिद्धये, समीक्ष्य शेषं स्वसहायकारकम् । तथैव सामान्यविशेषमातृका, नयास्तवेष्टा गुणमुख्यकल्पतः ॥ ६२ ॥ अन्वयार्थ-(यथा) जैसे ( एकशः कारकम् ) एक एक कारण उपादान कारण या सहकारी कारण ( अर्थसिद्धये ) किसी कार्य की उत्पत्ति के लिए ( शेषं स्वसहायकारकम समीक्ष्य ) अपने सिवाय दूसरे को अपना सहकारी कारण की अपेक्षा मानके वर्तता है । अर्थात उपादान कारण को अपने योग्य सहकारी कारणों की व सहकारी कारणों को अपने योग्य उपादान कारण की आवश्यकता है (तथैव) वैसे ही ( सामान्यविशेपमातृका नयाः ) सामान्य धर्म तथा विशेष धर्म को प्रगट करने वाले नय भी ( गुरामुख्यकल्पतः ) एकको मुख्य दूसरे को गौण कहने की अपेक्षा से ( तव इष्टा ) श्रापके मत में माननीय हैं । भावार्थ-~-शिष्य की शंका का समाधान यह है कि जहां जिस वस्तु में जो धर्म सम्भव है उन्हीं को बताने वाले नय हैं । नयों की प्रवृत्ति बिना नियम के स्वच्छन्द नहीं होती है। यहां दृष्टान्त दिया है कि हरएक कार्य की उन्नति के लिये उपादान व निमित्त दो कारणों की आवश्यकता होती है। मात्र एक अकेले से काम नहीं हो सकता है। यदि मात्र सुवर्ण ही हो और सहायक कारण न हो तो भी कड़ा कुण्डल ग्रादि नहीं बन सकता और जो मात्र सहायक कारण मसाला व शस्त्र प्रादि हों परन्तु उपादान कारण सुवरणं न हो तब भी सुवर्ण का कड़ा कुण्डल नहीं बन सकता है । इसलिये उपादान को निमित्त की व निमित्त को उपादान की जरूरत है। जैसे यह व्यवस्था नियमित है वैसे ही नयों का कथन है । वस्तु में सामान्य धर्म द्रव्य की अपेक्षा से है वही विशेष धर्म पर्याय की अपेक्षा से है, वस्तु तो सामान्य विशेषात्मक है । एक को मुख्य दूसरे को गौरण करके समझाया जाता है तबही नय की आवश्यकता पड़ती है। दोनों धर्मों को एक साथ न कहा जा सकता न समझाया जा सकता है । जव सामान्य को समझाते तव विशेष गौण हो जाता है । जब विशेष को समझाते तब सामान्य गौरण हो जाता है। वस्तु जैसी नियमाप स्वभाव से है वैसा ही बतलाना नयों का काम है। ऐसा प्रापका सिद्धान्त हे विमलनाय भगवान ! परम हितकारी है । ऐसा हो स्वामी ने प्राप्तमीमांसा में बताया है
SR No.010072
Book TitleParmatma Prakash evam Bruhad Swayambhu Stotra
Original Sutra AuthorYogindudev, Samantbhadracharya
AuthorVidyakumar Sethi, Yatindrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages525
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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