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________________ स्वयंभू स्तोत्र टीका भव्य श्रोताओं के पुण्य के उदय से तथा आपके नाम कर्म के उदय के कारण वचन योग व काय योग का व्यवहार मौजूद था, इस कारण प्रकाश हुई, वह किसी तरह अप्रमाणकि नहीं कही जा सकती है। शरीर त्याग के पहले ही आप परमात्मा हो गए। इससे यह भी दिखलाया है कि बिना शरीर के वारणी का प्रकाश जो पुद्गलमय है, किसी भी तरह संभव नहीं है। अमर्तीक, शरीर रहित परमात्मा से वारणी का प्रकाश नहीं हो सकता है-शरीर. धारी ही प्रगट कर सकता है । इसलिये शंकाकार की शङ्का का समाधान हो जाता है । फिर जब भगवान् शरीर को भी त्यागकर व सर्व अघातिया कर्मों से भी छूटकर मुक्त हुए व सिद्ध हुए तब भी लक्ष्मी का त्याग आपने नहीं किया। सर्वज्ञपना रूपी लक्ष्मी को सदा ही आलिंगन किये रहे। बाहरी समवसरणादि शोभा व वारगी का प्रकाश जिनके होने में प्रघातिया कर्म का उदय कारण था, नहीं रहे। परन्तु स्वाभाविक लक्ष्मी जो अनन्त ज्ञानादिमय थी वह तो प्रात्मा के साथ बनी रही । अर्थात् अरहन्त अवस्था में प्राप सर्वज्ञ वीतराग व हितोपदेशी थे, अब सिद्ध अवस्था में आप सर्वज्ञ वीतराग तो रहे ही। हितोपदेशीपना जो कर्मों के उदय से था वह न रहा । पात्रकेशरी स्तोत्र में अरहन्त का स्वरूप कहा है-वारणी की प्रमाणता बताई हैनहीन्द्रियधिया विरोघि न च लिंगबुद्धया बचो । न चाप्यनुमतेन ते सुनयसप्तघायोजितम् ।। व्यपेक्षपरिशंकनं वितथकारणादर्शनादतोपि भगवंस्त्वमेव परमेष्ठितायाः पदम् ॥११॥ भावार्थ-हे भगवान ! आप ही अरहन्त परमेष्ठी के पद को धारण करने वाले हैं क्योंकि आपका बचन ऐसा प्रमाणीक है कि वह न तो इन्द्रियज्ञान से बाधित होता है और न अनुमान प्रमाण से खण्डित होता है और न परस्पर प्रागम से विरोध पाता है। श्रापका वचन यथार्थ सप्तभंग रूपी नयों के द्वारा सिद्ध हो जाता है तथा पापके वचनों से शंका की जरूरत नहीं है क्योंकि आपमें असत्य भाषण के कारण जो अजान व राग द्वेष मोह हैं वे नहीं हैं। आप सर्वज्ञ वीतराग हैं मुक्तादाम छन्द धरत ज्ञानादिरिद्धि अविकार, परम ध्वनि चाम समवसृत सार । रहे अरहन्त परम हितकार, घरी बोध श्री मुक्ति मंझार ॥२७॥ उत्थानिका-प्ररहन्त अवस्था में हे भगवान ! श्रापको शरीर को प्रभा केसी शोभती हुई सो कहते हैं ।
SR No.010072
Book TitleParmatma Prakash evam Bruhad Swayambhu Stotra
Original Sutra AuthorYogindudev, Samantbhadracharya
AuthorVidyakumar Sethi, Yatindrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages525
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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