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________________ स्वयंभू स्तोत्र टीका को समझकर और उसको पालन कर अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त सुख, अनन्त वीर्य इन चार अपूर्व गुरणों के धारी परमात्मा हो गये हैं (भूतहितेन) जिन्होंने सर्व प्राणियों को हितकारी ऐसे मुक्ति के प्रानन्द की प्राप्ति का उपाय दिखलाया है तथा प्राप्त कराया है अर्थात् जो परम दयावान हैं ( समंजसज्ञानविभूतिचक्षुषा ) जिनके सर्व पदार्थों के तत्त्व को यथार्थ जानने वाली परम अतिशय रूप केवलज्ञानमयी दृष्टि प्रकाशमान है। ( येन) जिसने (क्षपाकरेण इव) चन्द्रमा की तरह (गुणोत्करैः करैः) स्वर्ग व मोक्ष की प्राप्ति के कारणरूप गुणों के समूह से भरपूर सम्यग्दर्शन ज्ञान-चारित्रमई किरणों से (तम विधुन्वता) ज्ञानावरण आदि कर्म रूप अंधकार को दूर कर दिया है,अथवा जिन्होंने निराबाध व यथार्थ अर्थ को प्रकाश करने वाले दूसरों के समझ में आने योग्य वचनरूपी किरणों से चन्द्रमा के समान दूसरे प्राणियों के प्रज्ञान रूपी अंधेरे को नाश कर दिया है,ऐसे श्री ऋषभदेव भगवान प्रथम तीर्थंकर (भूतले) इस पृथ्वी में (विराजितं) शोभायमान हैं। भावार्थ-जैन सिद्धान्त में गुणों की ही पूजा है । यहां पर इस वर्तमान अवसपिरणीकाल में प्रसिद्ध चौबीस तीर्थंकरों में आदि तीर्थंकर श्री ऋषभदेव का स्तवन किया गया है । ऋषभदेव इक्ष्वाकु वंश के शिरोमरिण श्री नाभिराजा और मरुदेवी माता के पुत्र थे । जन्म से ही मति श्रत अवधि इन तीन सम्यग्ज्ञान के धारी थे। जिनको प्रात्मज्ञान स्वयं ही झलक रहा था। उनको किसी से उपदेश सुनने की जरूरत नहीं थी। उनके गुरु वे प्राप ही थे। ऐसे परम ज्ञानी महात्मा ऋषभदेव ने स्वयं ही आत्मध्यान के बल से अरहंत पद प्राप्त किया। वे जीवन्मुक्त परमात्मा हुए। उनको केवलज्ञान प्रगट होगया, जिससे सर्व प्रज्ञान मिट गया । सर्व पदार्थ एक साथ अपने अनन्त गण व पर्याय सहित झलक गए। तब वे इन्द्र द्वारा रचित समवसरण में परम शोभा को प्रदर्शित करते हुए अर्थात् अपने ध्यानमई परम वीतराग शरीर की योगमुद्रा से वीतराग रस से पूर्ण प्रात्मानन्द के भोग को छटा को दिखलाते हए तिष्ठे । तब स्वयं मोह के नाश होने से परोपकार की इच्छा न रखते हुए भी भव्य जीवों के पुण्य के उदय से भगवान की दिव्यवाणी रूपी किरणें प्रगट हुई। जिन्होंने उसी तरह सुनने वालों के सशय, अज्ञान व बालस्य भाव को मेट टिया,जिस तरह चन्द्रमा रात्रि के अंधेरे को अपनी किरणों से दूर कर देता है । क्योंकि भगवान आदिनाथ ने स्वयं धर्मपुरुषार्थ का साधन कर मोक्ष पुरुषार्थ सिद्ध किया व अपने उपदेश से सच्चा मोक्ष मार्ग बताकर अनेक जीवों का कल्याण किया । ऐसे स्वपर हितकारी परमात्मा का स्मरण हम इसीलिए करते हैं कि हमारे भीतर भी ऐसा ही पुरुषार्थ प्रगट हो, जो हम
SR No.010072
Book TitleParmatma Prakash evam Bruhad Swayambhu Stotra
Original Sutra AuthorYogindudev, Samantbhadracharya
AuthorVidyakumar Sethi, Yatindrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages525
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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