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________________ २८४ ] परमात्मप्रकाश सहा प्रवीण हैं, और जिनके मिथ्यात्व राग द्वषादि मलकर रहित शुद्ध भाव हैं, ऐसे पुरुषों के सिवाय दूसरा कोई भी परमात्मप्रकाशके आराधने योग्य नहीं है ।।२०।। एवं चतुर्विंशतिसूत्रप्रमितमहास्थलमध्ये परमाराधकपुरुषलक्षणकथनरूपेण सूत्रत्रयेण षष्ठमन्तरस्थलं गतम् । अथ शास्त्रफलकथनमुख्यत्वेन सूत्रमेकं तदनन्तरमौद्धत्यपरिहारेण च सूत्रद्वयपर्यन्तं व्याख्यानं करोति । तद्यथा लक्खण-छंद-विवज्जियउ एह परमप्प-पयासु । कुणइ सुहावई भावियउ चउ-गइ-दुक्ख-विणासु ॥२१०॥ लक्षणछन्दोविजितः एष परमात्मप्रकाशः । करोति सुभावेन भावितः चतुर्गतिदुःखविनाशम् ।।२१०।। इस प्रकार चौबीस दोहोंके महास्थलमें आराधक पुरुषके लक्षण तीन दोहोंमें कहके छट्ठा अन्तरस्थल समाप्त हुआ। आगे शास्त्रके फलके कथनकी मुख्यताकर एक दोहा और उद्धतपनेके त्यागकी मुख्यताकर दो दोहे इस तरह तीन दोहोंमें व्याख्यान करते हैं-(एष परमात्मप्रकाशः) यह परमात्मप्रकाश (सुभावेन भावितः) शुद्ध भावोंकर भाया हुआ (चतुर्गतिदुःखविनाशं ) चारों गतिके दुःखोंका विनाश ( करोति ) करता है । जो परमात्मप्रकाश (लक्षणछंदोविजितः) यद्यपि व्यवहारनयकर प्राकृतरूप दोहा छन्दोकर सहित है, और अनेक लक्षणोंकर सहित है, तो भी निश्चयनयकर परमात्मप्रकाश जो शुद्धात्मस्वरूप वह लक्षण और छन्दोकर रहित है । भावार्थ-शुभ लक्षण और प्रबन्ध ये दोनों परमात्मामें नहीं हैं। परमात्मा शुभाशुभ लक्षणोंकर रहित है, और जिसके कोई प्रबन्ध नहीं, अनन्तरूप है, उपयोगलक्षणमय परमानन्द लक्षणस्वरूप है, सो भावोंसे उसको आराधो, वही चतुर्गतिकेदुःखा का नाश करनेवाला है। शुद्ध परमात्मा तो व्यवहार लक्षण और श्रु तरूप छन्दास रहित है, इनसे भिन्न निज लक्षणमयी है, और यह परमात्मप्रकाशनामा अध्यात्म-ग्रन्य यद्यपि दोहेके छन्दरूप है, और प्राकृत लक्षणरूप है, परन्तु इसमें स्वसंवेदनज्ञानका मुख्यता है, छन्द अलङ्करादिकी मुख्यता नहीं है ।।२१०।।
SR No.010072
Book TitleParmatma Prakash evam Bruhad Swayambhu Stotra
Original Sutra AuthorYogindudev, Samantbhadracharya
AuthorVidyakumar Sethi, Yatindrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages525
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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