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________________ १३२ ] परमात्मप्रकाश भावार्थ-व्यवहारसम्यक्त्वके कारणभूत छह द्रव्योंका सांगोपांग व्याख्यान करते हैं "परिणाम" इत्यादि गाथासे । इसका अर्थ यह है, कि इन छह द्रव्यों में विभावपरिणामके परिणमनेवाले जीव और पुद्गल दो ही हैं, अन्य चार द्रव्य अपने स्वभावरूप तो परिणमते हैं, लेकिन जीव पुद्गलकी तरह विभावव्यंजन पर्यायके अभाव से विभावपरिणमन नहीं है, इसलिये मुख्यता से परिणामी दो द्रव्य ही कहे हैं, शुद्धनिश्चयनयकर शुद्ध ज्ञान दर्शन स्वभाव जो शुद्ध चैतन्यप्राण उनसे जीवता है, जीवेगा, पहले जी आया, और व्यवहारनयकर इन्द्री, बल, आयु, स्वासोस्वासरूप द्रव्य प्राणोंकर जीता है, जीवेगा, पहले जी चुका, इसलिये जीवको ही जीव कहा गया है, अन्य पुद्गलादि पांच द्रव्य अजीव हैं, स्पर्श, रस, गन्ध, वर्णवाली मूर्ति सहित मूर्तीक एक पुद्गलद्रव्य ही है, अन्य पांच अमूर्तीक हैं । उनमेंसे धर्म, अधर्म, आकाश, काल ये चारों तो अमूर्तीक हैं, तथा जीवद्रव्य अनुपचरित असद्भूतव्यवहारनयकर मूर्तीक भी कहा जाता है क्योंकि शरीरको धारण कर रहा है, तो भी शुद्ध निश्चयनयकर अमूर्तीक ही है, लोकप्रमाण असंख्यात प्रदेशी जीवद्रव्यको आदि लेकर पांच द्रव्यं पंचास्तिकाय हैं, वे सप्रदेशी हैं, और कालद्रव्य बहुप्रदेश स्वभावकायपना न होनेसे अप्रदेशी है, धर्म, अधर्म, आकाश ये तीन द्रव्य एकएक हैं, और जीव पुदुगल काल ये तीनों अनेक हैं । जीव तो अनन्त हैं, पुद्गल अनन्तानन्त हैं, काल असंख्यात हैं, सब द्रव्योंको अवकाश देने में समर्थ एक आकाश ही है, इसलिये आकाश क्षेत्र कहा गया है, बाकी पांच द्रव्य अक्षेत्री हैं, एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में गमन करना, वह चलन हलनवती क्रिया कही गयी है, यह क्रिया जीव पुद्गल दोनोंके ही है, और धर्म, अधर्म, आकाश, काल, ये चार द्रव्य निष्क्रिय हैं, जीवों में भी संसारी जीव हलन चलनवाले हैं, इसलिये क्रियावन्त हैं, और सिद्धपरमेष्ठी निःक्रिय हैं, उनके हलन चलन क्रिया नहीं है, द्रव्यार्थिकनयसे विचारा जावे तो सभी द्रव्य नित्य हैं, अर्थपर्याय जो षट्गुणी हानिवृद्धिरूप स्वभावपर्याय है, उसकी अपेक्षा सब ही अनित्य हैं, तो भी विभावव्यंजनपर्याय जीव और पुद्गल इन दोनोंकी है, इसलिये इन दोनों को ही अनित्य कहा है, अन्य चार द्रव्य विभाव के अभाव से नित्य ही हैं, इस कारण यह निश्चयसे जानना कि चार नित्य हैं, दो अनित्य हैं, तथा द्रव्यकर सब ही नित्य हैं, कोई भी द्रव्य विनश्वर नहीं है, जीवको पाचों ही द्रव्य कारणरूप हैं, पुदुगल तो शरीरादिकका कारण है, धर्म अधर्मद्रव्य गति स्थिति के कारण हैं, आकाशद्रव्य
SR No.010072
Book TitleParmatma Prakash evam Bruhad Swayambhu Stotra
Original Sutra AuthorYogindudev, Samantbhadracharya
AuthorVidyakumar Sethi, Yatindrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages525
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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