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________________ १२६ ] परमात्मप्रकाश अपि पुद्गलं) जीव और पुद्गल इन दोनोंको (परिहत्य) छोड़कर (इतराणि) दूसरे (चत्वारि एव द्रव्यारिण) धर्मादि चारों ही द्रव्य (गमनागमनविहीनानि) चलन हलनादि क्रिया रहित हैं, जीव पुद्गल क्रियावंत हैं, गमनागमन करते हैं, ऐसा (ज्ञानप्रवीणाः) ज्ञानियोंमें चतुर रत्नत्रयके धारक केवली श्रुतकेवली (प्रभणति) कहते हैं । भावार्थ -जीवोंके संसार-अवस्थामें इस गतिसे अन्यगतिके जानेको कर्मनोकर्म जातिके पुद्गल सहायी हैं। और कर्म नोकर्मके अभावसे सिद्धोंके निःक्रियपना है, गमनागमन नहीं है। पुद्गलके स्कन्धोंको गमनका बहिरंग निमित्तकारण कालाणुरूप कालद्रव्य है। इससे क्या अर्थ निकला ? यह निकला कि निश्चयकालकी पर्याय जो समयरूप व्यवहारकाल उसकी उत्पत्तिमें मन्द गतिरूप परिणत हुआ अविभागी पुद्गल. परमाणु कारण होता है। समयरूप व्यवहारकालका उपादानकारण निश्चयकालद्रव्य है, उसीकी एक समयादि व्यवहारकालका मूलकारण निश्चयकालाणुरूप कालद्रश्य है, उसीकी एक समयादिक पर्याय है, पुद्गलपरमाणकी मन्दगति बहिरङ्ग निमित्तकारण है, उपादानकारण नहीं है, पुद्गल परमाणु आकाशके प्रदेशमें मन्दगतिसे गमन करता है, यदि शीघ्र गतिसे चले तो एक समय में चौदह राजू जाता है, जैसे घटपर्यायकी उत्पत्तिमें मूलकारण तो मिट्टीका डला है, और बहिरंगकारण कुम्हार है, वैसे समयपर्यायकी उत्पत्ति में मूलकारण तो कालाणुरूप निश्चयकाल है, और बहिरंग निमित्त. कारण पुद्गलपरमाणु है । पुद्गलपरमाणुकी मन्दगतिरूप गमन समयमें यद्यपि धर्मद्रव्य 'सहकारी है, तो भी कालाणुरूप निश्चयकाल परमाणुकी मन्दगतिका सहायी जानना । परमाणुके निमित्तसे तो कालका समयपर्याय प्रगट होता है, और कालने सहायसे परमाणु मन्दगति करता है। कोई प्रश्न करे कि गतिका सहकारी धर्म है, कालको क्यों कहा ? उसका समाधान यह है कि सहकारीकारण बहुत होते हैं, और उपादानकारण एक ही होता है, दूसरा द्रव्य नहीं होता, निज द्रव्य ही निज (अपनो) गुण-पर्यायोंका मूलकारण है, और निमित्तकारण बहिरंगकारण तो बहुत होते हैं, इसम कुछ दोष नहीं है । धर्मद्रव्य तो सवहीका गतिसहायी है, परन्तु मछलियोंको गतिसहायो जल है, तथा घटकी उत्पत्ति में वहिरंगनिमित्त कुम्हार है, तो भी दंड-चक्र चीवरादिक ये भी अवश्य कारण हैं, इनके बिना घट नहीं होता, और जीवोंके धर्मद्रव्य गतिमा सहायी विद्यमान है, तो भी कर्म नोकर्म पुद्गल सहकारीकारण हैं, इसी तरह पुद्गलको कालद्रव्य गति सहकारी कारण जानना । यहां कोई प्रश्न करे कि धर्मद्रव्य तो गतिका
SR No.010072
Book TitleParmatma Prakash evam Bruhad Swayambhu Stotra
Original Sutra AuthorYogindudev, Samantbhadracharya
AuthorVidyakumar Sethi, Yatindrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages525
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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