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________________ १२२ ] परमात्मप्रकाश द्रव्याथिकनयसे बिना टांकीका घड्या हुआ सुघटघाट ज्ञायक स्वभाव नित्य है । तथा मिथ्यात्व रागादिरूप अंजनसे रहित निरंजन है । ऐसी आत्माको तू भली-भांति जान, जो सब पदार्थों में उत्कृष्ट है । इन गुणोंसे मण्डित शुद्ध आत्मा ही उपादेय है, और सव तजने योग्य हैं ॥१८॥ अर्थ पुग्गल छव्विहु मुत्तु वढ इयर अमुत्त वियाणि । धम्माधम्मु वि गयठियहं कारणु पभणहिं णाणि ॥१६॥ पुद्गलः षड्विध: मूर्तः वत्स इतराणि अमूर्तानि विजानीहि । धर्माधर्ममपि गतिस्थित्योः कारणं प्रभणन्ति ज्ञानिनः ।।१६।। आगे फिर भी कहते हैं--(वत्स) हे वत्स, तू (पुद्गलः) पुद्गलद्रव्य (षड्-ि वधः) छह प्रकार तथा (मूर्तः) मूर्तीक है, (इतरांणि) अन्य सब द्रव्य (अमूर्तानि) अमूर्त हैं, ऐसा (विजानीहि) जान, (धर्माधर्ममपि) धर्म और अधर्म इन दोनों द्रव्योंको (गतिस्थित्योः कारणं) गति स्थितिका सहायक-कारण (ज्ञानिनः) केवली श्रुतकेवली (प्रभणंति) कहते हैं। भावार्थ-पुद्गल द्रव्यके छह भेद दूसरी जगह भी "पुढवी जलं" इत्यादि गाथासे कहते हैं । उसका अर्थ यह है, कि बादरबादर १, बादर २, बादरसूक्ष्म ३, सूक्ष्मबादर ४, सूक्ष्म ५, सूक्ष्मसूक्ष्म ६, ये छह भेद पुद्गलके हैं। उनमें से पत्थर काठ तृण आदि पृथ्वी बादरबादर हैं, टुकड़े होकर नहीं जुड़ते, जल घी तेल आदि बादर हैं, जो टूटकर मिलजाते हैं, छाया आतप चांदनी ये बादरसूक्ष्म हैं, जो कि देखने में तो बादर और ग्रहण करने में सूक्ष्म हैं, नेत्रको छोड़कर चार इन्द्रियोंके विषय रस गन्धादि सूक्ष्म बादर हैं, जो कि देखने में नहीं आते, और ग्रहण करने में आते हैं । कर्मवर्गणा सूक्ष्म हैं, जो अनन्त मिली हुई हैं, परन्तु दृष्टि में नहीं आतीं, और सूक्ष्मसूक्ष्म परमाणु है, जिसका दूसरा भाग नहीं होता । इस तरह छह भेद हैं । इन छहों तरह के पुद्गलोंको तू अपने स्वरूपसे जुदा समझ । ___ यह पुद्गलद्रव्य स्पर्श रस गन्ध वर्ण को धारण करता है, इसलिये मूर्तीक है, अन्य धर्म अधर्म दोनों गति तथा स्थिति के कारण हैं, ऐसा वीतरागदेवने कहा है। यहां पर एक बात देखने की है कि यद्यपि वज्रवृषभनारावसंहननरूप पुद्गलद्रव्य मोक्षके
SR No.010072
Book TitleParmatma Prakash evam Bruhad Swayambhu Stotra
Original Sutra AuthorYogindudev, Samantbhadracharya
AuthorVidyakumar Sethi, Yatindrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages525
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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