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________________ द्वितीय महाधिकारः - अत ऊर्ध्वं स्थलसंख्यावहिर्भूतान् प्रक्षेपकान् विहाय चतुर्दशाधिकशतद्वयप्रमितै दहकसूत्रर्मोक्षमोक्षफल मोक्षमार्गप्रतिपादन मुख्यत्वेन द्वितीयमहाधिकारः प्रारभ्यते । तत्रादौ सूत्रदशकपर्यन्तं मोक्षमुख्यतया व्याख्यानं करोति । तद्यथा - सिरिगुरु अक्खहि मोक्खु महु मोक्वहं कारण तत्थु | मोक्खहं केर अणु फलु जें जाणउं परमत्थु ॥ १ ॥ श्रीगुरो आख्याहि मोक्षं मम मोक्षस्य कारणं तथ्यम् । मोक्षस्य संबन्धि अन्यत् फलं येन जानामि परमार्थम् ।। १ ।। इसके बाद प्रकरणकी संख्या के बाहर अर्थात् क्षेपकोंके सिवाय दोसौ चौदह दोहा-सूत्रोंसे मोक्ष, मोक्ष फल और मोक्ष मार्गके कथन की मुख्यतासे दूसरा महा अधिकार आरंभ करते हैं । उसमें भी पहले दस दोहोंतक मोक्षको मुख्यतासे व्याख्यान करते हैं - ( श्रीगुरो ) हे श्रीगुरु, (मम) मुझे (मोक्षं) मोक्ष ( तथ्यं मोक्षस्य कारणं ) सत्यार्थ मोक्षका कारण, ( अन्यत् ) और ( मोक्षस्य संबंधि ) मोक्षका ( फलं ) फल ( आख्याहि ) कृपाकर कहो ( येन ) जिससे कि मैं ( परमार्थ) परमार्थको ( जानामि ) जानू । भावार्थ - प्रभाकरभट्ट श्रीयोगीन्द्रदेवसे विनती करके मोक्ष, मोक्षका कारण और मोक्षका फल इन तीनों को पूछते हैं ॥ १ ॥ अथ तदेव त्र्यं क्रमेण भगवान् कथयति जोइय मोक्खु वि मोक्ख-फलु पुच्छिउ मोक्खहं हेउ । सो जिण-भासिउ णिणि तुहुँ जेण वियाहि भेउ ॥ २ ॥ योगिन् मोक्षोऽपि मोक्षफलं पृष्टं मोक्षस्य हेतुः । तत् जिनभाषितं निश्शृष्णु त्वं येन विजानासि भेदम् || २ ||
SR No.010072
Book TitleParmatma Prakash evam Bruhad Swayambhu Stotra
Original Sutra AuthorYogindudev, Samantbhadracharya
AuthorVidyakumar Sethi, Yatindrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages525
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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