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________________ अपनी बात ] कुन्दकुन्द का संक्षिप्त जीवन तो आ ही गया है, उनके पंच परमागमों का सार भी आ गया है। जीवन के सन्दर्भ में इससे अधिक अभी कुछ उपलब्ध भी तो नहीं है । मैंने तो मात्र उपलब्ध सामग्री को व्यवस्थित कर दिया है, मेरे द्वारा जीवन के सन्दर्भ में कोई नई खोज नहीं की जा सकी है, पर इस सन्दर्भ में गहरी शोघ-खोज की आवश्यकता अवश्य है । उनके साहित्य का भाषा की दृष्टि से भी अध्ययन अपेक्षित है। वस्तुतः बात यह है कि मैं इतिहास और भाषा का अध्येता नहीं हूँ। मैं तो मूलतः आध्यात्मिक व्यक्ति हूँ। अतः मेरी रुचि और गति जितनी उनके अध्यात्म में है, उतनी भाषा व इतिहास में नहीं । मेरा सर्वस्व तो उनके अध्यात्म के पठन-पाठन, चिन्तन-मनन एवं प्रचारप्रसार के लिए ही समर्पित है। मैं अपने उपयोग को इससे हटाना भी नहीं चाहता हूँ । अतः मुझसे अन्य क्षेत्र में कुछ होना संभव भी नहीं है, तथापि मैं उनके अन्य क्षेत्रों में गहरे अध्ययन की आवश्यकता अवश्य अनुभव करता हूँ। मैं विगत ३२ वर्षों से प्राचार्य कुन्दकुन्द के ग्रंथों के घनिष्ट परिचय में हैं। उनके ग्रंथों के पठन-पाठन में मुझे अदभुत प्रानन्द आता है। समयसार पर तो आद्योपान्त अनेकबार प्रवचन भी कर चुका हूँ। आज के द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव से भी परिचित हूँ। अतः मैंने इस कृति के प्रणयन में पाण्डित्य का प्रदर्शन न कर सीधी सरल भाषा में कुन्दकुन्द के प्रतिपाद्य को जनसाधारण के सामने रखने का प्रयास किया है। कुन्दकुन्द के ग्रंथों की प्रस्तावना लिखते समय भी मेरा यही दृष्टिकोण रहा है। वैसे तो मैं अपने सभी साहित्य में सरलता और सहजता के प्रति सतर्क रहा है, पर इस कृति मे तो विशेष ध्यान रखा गया है। इसी कारण कुन्दकुन्द की साहित्यिक विशेषताओं की चर्चा भी नहीं की है। मैं अपने इस प्रयास में कहाँ तक सफल रहा हूँ- इसका निर्णय प्रिय पाठकों पर ही छोड़ता हूँ। कुन्दकुन्द साहित्य की अध्यात्म-गंगा में सभी प्रात्मार्थीजन आकण्ठ निमग्न होकर अतीन्द्रिय-प्रानन्द प्राप्त करें- इस पावन भावनापूर्वक विराम लेता हूँ। १ जनवरी, १९८८ ई० -(डॉ.) हुकमचन्द भारिल्ल
SR No.010068
Book TitleKundakunda Aur Unke Panch Parmagama
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1988
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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