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________________ सूत्र ४] तृतीयाधिकरणे द्वितीयोऽध्यायः [१४७ घटना श्लेष.। ३, २, ४। क्रमकौटिल्यानुल्वणत्वोपपत्तियोगो घटना । स श्लेषः । यथा दृष्ट्कासनसंस्थिते प्रियतमे पश्चादुपेल्यादरादेकस्या नयने निमील्य विहितक्रीडानुवन्धच्छलः। ईषद्वक्रितकन्धर. सपुलकः प्रेमोल्लसन्मानसा मन्तोसलसत्कपोलफलका धूर्तोऽपरां चुम्बति ॥ शूद्रकादिरचितेषु प्रबन्धेष्वस्य भूयान् प्रपञ्चो दृश्यते ॥४॥ ["श्रम', 'कौटिल्य', 'अनुल्वणत्व' और 'उपपत्ति' के योग को 'घटना' कहते है । ] यह घटना 'श्लेष [कहलाती ] है। क्रम, कौटिल्य, अनुल्वणत्व और उपपत्ति का योग [ ही यहां ] घटना [ कहलाती ] है । वह [ विशेष प्रकार से श्लिष्ट होने से ] "श्लेष' है । जैसे दोनो [अपनी ] प्रियतमानो [ इन दोनो में से एक नायक को स्वकीया नायिका है और दूसरी सखी है जिसके प्रति नायक का प्रच्छन्न अनुराग है। अन्यया यदि दोनो सपत्नी हो तो उनकी एकासनसस्थिति सुसङ्गत नहीं होगी।] को एक [ हो ] पासन पर इकट्ठी [वैठी ] देखकर 'धूर्त' [नायक चुपके से ] पीछे से पाकर प्रादर से एक [ अपनी स्वकीया पत्नी ] को [ दोनो] अाँखें बन्द कर [प्रांखमिचौनी के ] खेल का बहाना करता हुआ तनिक सी [अधिक नहीं अधिक गर्दन झुकाने से तो सन्देह हो जाता ] गर्दन मोडकर प्रेम से मानन्दित मन वाली और [अन्तर्हास ] मुस्कराहट से सुशोभित कपोलो वाली [प्रच्छन्न अनुरागा] दूसरी [ प्रियतमा ] को चुम्बन करता है। इसमें 'क्रम' शब्द का अर्थ अनेक क्रियानो की परम्परा है। जैसे यहा 'दृष्ट्वा, पश्चादुपेत्य, नयने पिधाय, विहितक्रीडानुबन्धच्छल , वक्रितवन्धर, चुम्बति' आदि क्रियानो की परम्परा पाई जाती है । इसी को 'क्रम' कहते है। और इस सबके भीतर अनुस्यूत विदग्ध-चेष्टित को 'कौटिल्य' कहते है । अप्रसिद्ध वर्णन के विरह अर्थात् प्रसिद्ध वर्णन शैली को 'अनुल्वणत्व' कहते है । और युक्तिविन्यास का नाम 'उपपत्ति' है । इन सबका योग जिसमें हो उस रचना में अर्थगुण 'श्लेष' होता है। इस उदाहरण रूप श्लोक में दर्शनादि क्रियानो का क्रम, उभयसमर्थनरूप 'कौटिल्य', लोकसव्यवहार रूप 'अनुल्वरणत्व', और 'एकत्रासनसस्थिते, पश्चादुपेत्य, नयने पिघाय, वक्रितकन्धरः' इत्यादि उपपादक युक्ति रूप 'उपपत्ति का योग होने से यह श्लेष' रूप अर्थगुण का उदाहरण होता है ।
SR No.010067
Book TitleKavyalankar Sutra Vrutti
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorVishweshwar Siddhant Shiromani, Nagendra
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1954
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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