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________________ उपयोगकी विधि आनी चाहिए । अन्यथा वह कीमती खिलोनेसे अधिक कुंछ नहीं रह जाती। पर नहीं, वह हर हालतमें कीमती खिलोनेसे अधिक है। कीमती खिलौना तो ज्यादहसे यादह टूटकर रह जायगा । पर कल्पना खुद नहीं टूटती, आदमीको तोड़ती है। उसका गलत उपयोग हुआ तो वह आदमीको तोड़-मोड़कर पशु बना सकती है। उसके ठीक इस्तेमालसे आदमी देवता बन जाता है। इसलिए, कल्पना खिलौना नहीं है और उससे खेलने में सावधान रहना चाहिए। दूरबीन जिसके पास पैसा है वही बाज़ारसे ले सकता है, पर कल्पना तो सभीको मिली है। उसके लिए किसीको भी किसी बाज़ारमें भटकना नहीं है । वह भीतर मौजद है । सवाल इतना ही है कि उसका इस्तेमाल होता रहे और वह मैली न हो और न ढीलीढाली हो जाय । ठीक कामके लायक रहे और वह बहके नहीं। . - सच बात यह है कि जैसे निगाह खराब होनेका मतलब यही है कि उसमें दूरको ठीक दूर और पासको ठीक पास देखनेकी शक्ति, नहीं रह गई,है वैसे ही बुद्धिकी खराबीका मतलब सिवा इसके कुछ नहीं है कि कल्पनाकी लचक उसमें कम हो गई है। " हमारा रोज़का अनुभव है कि अगर अपने ही हाथको हम अपनी आँखोके बहुत निकट लाते चले जायें तो अन्तमें आँख' काम नहीं ; देगी और मालूम होगा कि जैसे हाथ रहा ही नहीं है। किसी भी तसवीरको हम पाससे और पास देखनेका आग्रह करके उसे सिर्फ धब्बा बना दे सकते हैं। यहाँ तक कि उसे अपनी आँखसे बिल्कुल सटा लेकर कह सकते हैं कि वह कुछ भी नहीं है, क्योंकि २०४
SR No.010066
Book TitleJainendra ke Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1937
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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