SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 73
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनतत्त्वादर्श अथ चौबोस तीर्थङ्करों के चिह्न जो कि उनके दक्षिण पग में वा उनकी ध्वजा में होते हैं । [ अब तीर्थकरों के चिह्न भी उनकी प्रतिमा के आसन में ए चिह्न रहते हैं ] सो कहते हैं: - १. ऋषभदेव जी के बैल का चिह्न, २. अजितनाथ जी के हाथी का चिह्न, ३ सम्भवनाथ जी के घोड़े का चिह्न, ४. अभिनन्दन जी के बन्दर का चिह्न, ५ सुमतिनाथ जी के क्रौञ्चपक्षी का चिह्न, ६. पद्मप्रभ जी के कमल का चिह्न, ७. सुपार्श्वनाथ जी के साथिये का चिह्न, चन्द्रप्रभजी के चन्द्रमा का चिह्न, र सुविधिनाथपुष्पदन्त जी के मकर का चिह्न, १०. शीतलनाथ जी के श्रीवत्स का चिह्न, ११. श्रेयांसनाथ जी के गैंडे का चिन्ह, १२. वासुपूज्य जी के महिष का चिन्ह १३. विमलनाथ जी के शूकर का चिह्न, १४. अनन्तनाथ जी के बाज़ का चिह्न, १५. धर्मनाथ जो के वज्र का चिन्ह १६. शान्तिनाथ जी के हरिण का चिह्न. १७. कुन्थुनाथ जी के बकरे का चिह्न, १८. धरनाथ जी के नन्दावर्त का चिन्ह, १६. मल्लिनाथ जी के कुम्भ का चिन्ह, २० मुनिसुव्रतनाथ जी के कच्छु का चिन्ह, २१. नमिनाथ जी के नीले कमल का चिन्ह २२. अरिष्टनेमि जी के शङ्ख का चिन्ह, २३. पार्श्वनाथ जी के सर्प का चिन्ह, २४ महावीर जी के सिह का चिन्ह, होता है । १. " नाभिः - नह्यत्यन्यायिनो #हकारादिभिनतिभिरिति ३० * कुलकरों की दण्ड नीति का विधान ' हक्कार', 'मक्कार' और 'धिक्कार' से किया जाता था इन तीनों नीतियो में पहली जघन्य,
SR No.010064
Book TitleJain Tattvadarsha Purvardha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1936
Total Pages495
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy