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________________ २० जैनतत्त्वादर्श श्री शीतलनाथ १९. श्री श्रेयांसनाथ १२. श्री वासुपूज्य १३. श्री विमलनाथ १४. श्री अनन्तनाथ १५. श्री धर्मनाथ १६. श्री शान्तिनाथ १७. श्री कुन्थुनाथ १८. श्री अरनाथ १९. श्री मल्लिनाथ २०. श्री मुनिसुव्रत स्वामी २१. श्री नेमिनाथ २२. श्री अरिष्टनेमि २३. श्री पार्श्वनाथ २४. श्री महावीर । अब चौवीस तीर्थङ्कर भगवन्तों के जो नाम हैं, सो किस किस कारण से हुवे हैं, तिन नामों का एक सामान्य और तो सामान्यार्थ है, जो सब तीर्थङ्करों में विशेष अर्थ *पावे और दूजा विशेषार्थ है जो एक ही तीर्थङ्कर के नाम का निमित्त है, सो लिखते हैं १. "ऋषति गच्छति परमपदमिति ऋषभः" जावे जो परम पद को सो ऋषभ । यह अर्थ सब तीर्थङ्करों में व्यापक है । अथ विशेषार्थ - "उर्वोर्वृषभलाञ्छनमभूत्, भगवतो जनन्या च चतुर्दशानां स्वप्नानामादौ वृषभो दृष्टस्तेन ऋषभ ः " - भगवान की दोनों साथलों में बैल का लाञ्छन था, अथवा भगवन्त की * चरितार्थ होता है | 1 ऋषभदेव का दूसरा नाम 'वृषभ' भी है यथा- 'वृष् उद्वहने ' समग्रसंयमभारोद्वहनाद् वृषभः सर्व एव च भगवन्तो यथोक्तस्वरूपा । अर्थ - 'वृष' धातु भार उठाने के अर्थ में है । अर्थात् संयम भार के उठाने से भगवान् ऋषभदेव का 'वृषभ' भी नाम है । सभी भगवान् उक्त स्वरूप वाले होते हैं, अतः यह सामान्य स्वरूप है । [ आ० नि० हारि० टी० गा० १०७० ]
SR No.010064
Book TitleJain Tattvadarsha Purvardha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1936
Total Pages495
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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