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________________ चतुर्थ परिच्छेद ३४३ शेषपरीक्षणमभ्युपगमसिद्धांतः”-जैसे किसी ने कहा शब्द क्या वस्तु है ? कोई एक कहता है कि शब्द द्रव्य है, सो शब्द नित्य है ? वा अनित्य है ? इत्यादि विचार । यह चार प्रकार का सिद्धांत भी ज्ञान विशेष से अतिरिक्त नहीं है । अरु ज्ञानविशेष आत्मा का गुण है, जो गुणीके ग्रहण करने से ग्रहण किया जाता है । इस वास्ते पृथक् पदार्थ नहीं। ७. अथ अवयव-प्रतिज्ञा, हेतु, उदाहरण, उपनय, निगमन, इन पांचों अवयवों को जेकर शब्दमात्र मानिये, तब तो पुद्गल रूप होने से अजीव तत्त्व में ग्रहण किये जा सकते हैं। जेकर ज्ञानरूप मानिये, तब तो जीव तत्त्व में ग्रहण किये जा सकते हैं । इस वास्ते पृथक् पदार्थ कहना ठीक नहीं । जेकर ज्ञान विशेष को पृथक् पदार्थ मानिये तव तो पदार्थ बहुत हो जावेंगे, क्योंकि ज्ञानविशेष अनेक प्रकार के हैं। ८. संशय के अनन्तर भवितन्यता प्रत्ययरूप जो पदार्थ पर्यालोचन, तिस को तर्क कहते हैं । जैसे कि, यह स्थाणु अथवा पुरुष जरूर होगा । यह भी ज्ञान विशेष ही है । ज्ञानविशेष जो है, सो ज्ञाता से अभिन्न है, इस वास्ते पृथक् पदार्थ कल्पना ठीक नहीं। ९. संराय और तर्क सेती उत्तर काल भावी निश्चयात्मक जो ज्ञान, तिस का नाम निर्णय है । यह भी ज्ञानविशेष है, अरु निश्चयरूप होने से प्रत्यक्षादि प्रमाणों के अंतर्भूत होने से पृथक् पदार्थ मानना ठीक नहीं।
SR No.010064
Book TitleJain Tattvadarsha Purvardha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1936
Total Pages495
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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