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________________ चतुर्थ परिच्छेद अजीवादिक पदार्थों के साथ न्यारे न्यारे वीस विकल्प जान लेने । तव वीस को नव से गुणाकार करने पर एक सौ अस्सी मत क्रियावादी के होते हैं । अथ अक्रियावादी के चौरासी मत लिखते हैं । अक्रिया वादी कहते हैं, कि क्रिया-पुण्यपापरूगादि अक्रियावादी के नहीं है। क्योंकि क्रिया स्थिर पदार्थ ८४ मत को लगती है । परन्तु स्थिर पदार्थ तो जगत् में कोई भी नहीं है, क्योंकि उत्पत्त्यनंतर ही पदार्थ का विनाश हो जाता है । ऐसे जो कहते हैं, सो अक्रियावादी * । तथा चाहुरेकेः क्षणिकाः सर्वसंस्कारा अस्थिराणां कुतः क्रिया। भूतिय॒पां क्रिया सैव, कारकं सैव चोच्यते ॥ षड्० स० श्लो० १ बृहद्वृत्ति अर्थ:-सर्व संस्कार-पदार्थ क्षणिक है, इस वास्ते अस्थिर पदार्थों को पुण्यपापादि क्रिया कहां से होवे ? पदार्थों का जो होना है, सोई क्रिया है, सोई कारक है, इस वास्ते पुण्यपापादि क्रिया नहीं है। यह जो प्रक्रियावादी हैं, सो * न कस्यचित्प्रतिक्षणमवस्थितस्य पदार्थस्य क्रिया सभवति, उत्पत्त्यनन्तरमेव विनाशादित्येवं ये वदन्ति ते अक्रियावादिन आत्मादि नास्तित्ववादिन इत्यर्थः । षड्० स०, श्लो० १ की बृहवृत्ति]
SR No.010064
Book TitleJain Tattvadarsha Purvardha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1936
Total Pages495
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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