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________________ (न) (शिक्षा आदि) के अनुसार कुछ न कुछ अन्तर अवश्य होता है । महाराज साहिब की साधारण भाषा पर विचार हो चुका है। उन की साहित्यिक भाषा जिस में वे ग्रंथ रचना करते थे, एक प्रकार की मिश्रित हिंदी थी, जिस में मारवाडी ढुंढारी आदि का कुछ २ मिश्रण था *। ऐसा होने के मुख्य कारण ये हैं: (१) महाराज साहिब के समय में हिंदी का पूर्ण विकास नहीं हुआ था और न ही इस ने कोई निश्चित रूप धारण किया था । अंग्रेजी राज्य के स्थापन होने से पहले हिंदी की यह दशा थी कि कविता के लिये व्रज और अवधी का प्रयोग होता था और गद्य लिखने के लिये प्रान्तीय भाषाओं का अथवा प्रान्तीय मिश्रित हिंदुस्तानी का, क्योंकि मुसलमानों ने हिंदुस्तानी का दूर २ प्रचार कर दिया था । अधुनिक * १ जैनियों की मिश्रित भाषा के लिये देखिये-"माधुरी" सं० १९८१ भाद्र० पृ० २११-१३,आश्वित पृ० ३२५-३० जहां कई उदाहरण दिए गए हैं। २. महाराज जी के "नवतत्त्व" (रचना सुं० १९२७) के संपादक (सन् १९३१) अपनी उपोद्घात में लिखते है - "श्रा ग्रंथ नी मुख्य भाषा हिंदी गणाय जो के केटलीक वार संस्कृत, प्राकृत अने गुजराती प्रयोगो एमा दृष्टिगोचर थाय छे; कोइक वेला तो पंजाबी शब्दो पण नजर पडे छ":
SR No.010064
Book TitleJain Tattvadarsha Purvardha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1936
Total Pages495
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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