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________________ जैन तत्त्वादर्श मतावलंबी पुरुष, ईश्वर को जगत् का कर्त्ता वा सर्व वस्तु का कर्त्ता क्यों मानते हैं ? क्या इन में से कोई भी ईश्वर के जगत्कर्त्तापने का निषेध करने वाला समझदार नहीं भया ? उत्तरः- हे भव्य ! जैन, बौद्ध, प्राचीनसांख्य, पूर्वमीमांसा - कार जैमिनी मुनि के संप्रदायी भट्ट, प्रभाकर, इत्यादि अनेक मतावलंबियों में से कोई भी समझदार न भया जो ईश्वर को जगत् का कर्त्ता स्थापन करता । - प्रश्न: - जैन बौद्ध ग्ररु प्राचीन सांख्यादि उक्त मतावलंबी सर्व अज्ञानी हुए हैं, इस हेतु से ईश्वर को जगत् का कर्त्ता नहीं मानते । ८६ उत्तरः- नवीन वेदांती, नैयायिक प्ररु वैशेषिकादि यह भी सर्व अज्ञानी हुए हैं, जो ईश्वर को जगत् का कर्त्ता मानते हैं । प्रश्न: - - ईश्वर जगत् का वा सर्व वस्तु का कर्त्ता है, ऐसे जो मानिये, तो क्या दूपण है ? उत्तर:- ईश्वरको जगत् का कर्ता वा सर्व वस्तु का कर्ता मानने से बहुत दूषया आते हैं। प्रश्नः - तुम तो प्रपूर्व चात सुनाते हो, हमने तो कदापि नहीं सुना कि ईश्वर को जगत्कर्त्ता वा सर्व वस्तुका कर्त्ता मानने में दूषण श्राता है । अतो आपको कहना चाहिये कि जगत् का कर्त्ता मानने से ईश्वर में क्या दूषया आता है ? उत्तर:- हे भव्य ! प्रथम तुम यह बात कहो कि तुम कौनसा ईश्वर जगत् का कर्त्ता मानते हो ?
SR No.010064
Book TitleJain Tattvadarsha Purvardha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1936
Total Pages495
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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