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________________ ( ६२ ) सादा व संयमी जीवन विताना चाहिये । सुशिक्षा व सत्संग से मनुष्य सुधर सकता है। ___पूणिया श्रावकजी बड़े उदार व तपस्वी थे। अपनी आय में से प्राधी रकम हमेशा सत्कार्य में लगाते थे दोनों पति पत्नी निरन्तर एकान्तर उपवास करके भी उत्तम श्रावक, विद्यार्थी या अन्य सुपात्र को भोजन दान, विद्यादान या अन्य उत्तम सहायता के रूप में आधी आय कम से कम देकर पारणा करते थे। वे बड़े सत्यवादी थे । सुबह सामायिक व ज्ञान ध्यान करके दुपहर को दूकान खोलते । लोग इनकी ईमानदारी तथा प्रिय और नम्र वचनों के कारण उसी समय पूणियां लेने को आते । चार आना मिलने पर वे उसी दम दूकान बंध कर देते । और सारा दिन उत्तम कामों में व्यतीत करते । यह बात बिलकुल सत्य है कि सत्यवादी ईमानदार व्यापारी के ही ग्राहक जमते हैं। __ पूणिया श्रावकजी परम पवित्र श्रावक धर्म का पालन करके उत्तम देवगति में पधारे । वहां से मनुष्य होकर मोक्ष गति प्राप्त करेंगे। प्यारे बालको ! आपको भी पूणिया श्रावक सरीखा भित्र जीवन विताना चाहिये । - - - -
SR No.010061
Book TitleJain Shiksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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