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________________ ( ८९ ) सेठ है और द्रव्य में नौकर । मुनिमजी प्रति दिन एक सामायिक करते हैं और आपभी एक ही करते हैं । ऐसी दशा में आप दोनों बराबर है। . . श्रीमंत को पूर्व जन्म की पुण्याई के प्रताप से यथेष्ट धन प्राप्त हुआ है, उसे खाने कमाने की बिलकुल चिंता नहीं है । अतएव सेठ रूप में नौकरी करने के बजाय सेठ की हैसियत से ही बचत का समय धर्मध्यान मे व्यतीत करने वाला सच्चा श्रीमंत है। और तभी उसकी श्रीमंताई सार्थक मानी जावेगी । अन्यथा उसका दुरुपयोग ही माना जावेगा। मनुष्य जन्म भरत महाराज के अरीसा भवन के समान है । उस भवन में भरत महाराज केवल ज्ञान प्राप्त कर मोक्ष में पधारे थे। उसी में अगर किसी कुत्ते को छोड़ दिया जाता तो वह उस सारे भवन को खुद के प्रतिबिंबों के कारण कुत्तों से भरा हुआ मानकर अपने द्वेषी स्वभाव से भूक २ कर और सिर पटक २ कर प्राणों को त्याग देता। याने जिस भवन में भरत महाराज केवल ज्ञान प्राप्त करते हैं उसी में एक कुत्ता अपने प्राण त्यागता है। इसी तरह मनुष्य जन्म रुपी अरिसा भवन को प्राप्त कर अनेक महापुरुषों ने इसमें मोक्ष की प्राप्ती की है और • आत्म स्वरुप से अनभिज्ञ कई प्राणी आत्म साधन के स्थान में आत्म विराधना करके अनंत संसार की वृद्धि करते हैं । और चौरासी लक्षं जीवयोनि रुपी दावानल में
SR No.010061
Book TitleJain Shiksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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