SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 323
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (८८) होगा कि धर्म की भावना धनवानी में बहुत अल्प मात्रा में रहती है । विरले धनवान ही धर्माराधना करने में तत्पर रहते हैं। एक अंग्रेज तत्त्व वेता ठीक कहता है कि It is easier for a came to pass Through the whole of a needle than for a rich man to enter into the Kingdom of God. भावार्थ-ऊंट के लिये सुई के नाक में से पार होना आसान है किन्तु धनवान मनुष्य के लिये भगवान के राज्य में प्रवेश करना मुश्किल है। सुख में मनुष्य धर्म भावना को भूल जाते हैं । दुःख में धर्म भावना की जागृति होती है। श्री अनाथी मुनि. श्री नमीरायजी तथा श्री शालिभद्रजी आदि अनेक महा पुरुषों को दुःखानुभव होने पर ही वे आत्म साधनार्थ तत्पर हुए थे। आप अब समझ गये होंगे कि नोकरो से आप धन में अधिक होने से आरंभ तथा परिग्रह मे भी उनसे कई गुणा बढकर हैं। क्या पाप में नौकरों से बढकर होने में आपकी श्रीमंताई है ! ऐसी श्रीमंताई तो आत्मा के लिये हानि कारक है । जो मनुष्य धन में नौकरों से बढकर हैं उसी तरह वह धर्म आराधना में भी उनसे बढकर हो वही वास्तव में सेठ है। एसा सेठ ही · द्रव्य तथा भाव दोनों में सच्चा सेठ है । वरना द्रव्य में वह सेठ रहेगा भाव में वह नौकर । इसके विपरीत नौकर अल्प आरंभी तथा अल्प परिग्रही होने के कारण भाव में
SR No.010061
Book TitleJain Shiksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy