SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 173
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३६ श्री आत्म-बोध और अमुक समय तक गर्भ मे रहने के बाद बाहर आता है (जन्म लेता है)। उसी प्रकार वनस्पति भी पृथ्वी माता के गर्भ में बीज को अमुक समय तक रखने पर ही अंकुर रूप से बाहिर आती है। २-मनुष्य जैसे छोटी उमर से धीरे २ बढ़ता है वैसे ही वनस्पति भी बढ़ती है। ३-मनुष्य जैसे बाल, युवा और वृद्ध अवस्था पाता है वैसे ही वनस्पति भी तीनो अवस्था पाती है। ४-जैसे शरीर से किसी अग के जुदा होने पर वह निर्जीव हो जाता है वैसे ही वनस्पति डाली, पत्ते आदि के निज से जुदा होने से निर्जीव हो जाती है। ५-जैसे मनुष्य के शरीर मे छेद होने से लोह निकलता है वैमे ही वनस्पति मे छेद होने से प्रवाही रक्त निकलता है। ६--जैसे खुगक न मिलने से मनुष्य सूख जाता है और खुराक से पुष्ट बनता वैसे ही वनस्पति खुराक मिलने से चौमासे में विकसित होती तथा खुराक कम मिलने पर सख जाती है। ___-जैसे मनुष्यादि श्वासोश्वास लेते हैं वैसे ही वनस्पति भी श्वासोश्वाम लेती है (दिन में कार्बन ले कर आक्सीजन निकालती है तथा गत में आक्सीजन लेकर कार्वन निकालती है) ८-अनार्य मनुष्य जैम मासाहारी होते हैं वैसे ही कई वनस्पति मक्खी, पतंगिए यादि खाती है। (जन्तुयो के पत्तो पर बैठत ही परो वध हो जाते हैं।)
SR No.010061
Book TitleJain Shiksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy