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________________ श्रीआत्म-बोथ आध्यात्मिक जीवन का यह समुद्र है। मुख के ऊपर चंद्र की गहरी शीतलता है। सूर्य जैसा तेजस्वी जगमगाहट हो । आंखो मे वीरता का पानी झनक रहा हो । जीवन पर ब्रह्मचर्य का निशान फहरा रहा हो। चेहरे मे अमृत भरा हो । निसको पी-पी कर जगत् विशेष प्यासा बचे । मैत्री, प्रमोद, करुणा, और माध्यस्थ भावना को रेखा ओठगे पर लहरे लेती हो। सुशीलता के भार से भवें नम रही हों। जीभ को मीठास से पत्थर भी पिघल जाय । जैन के जीवन मे अडिग धैर्य और अखण्ड शान्ति हो। होहमय नेत्रो में से विश्वप्रेम की नदी बहे । जैन बोले भोड़ा किन्तु बहुत मीठा । जैसे मुँह में से अमृत गिरा रहा हो। श्रोता वचनामृत का प्यासा बना ही रहे । मधुर वचन से सब वश होवे। जैन गहरा ऊँडा है, कभी छलकता नहीं है । जैन के पैर गिरे वहां कल्याण छा जाय । शब्द गिरे वहां शान्ति छा जाय । जैन के सहवास से अजीब शांति मिलती है। जैन प्रेम करता है,मोह को समझता ही नहीं है । जैन के दम्पति धर्म में विलास की गंध नहीं है। जैन सदा जागृत है।
SR No.010061
Book TitleJain Shiksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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