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________________ [ २८ ] पढ़ने में आलस्य महानजो करते वे हैं नादान, चुगली खाना भारी पाप इससे बचते रहना आप । गुरुओं का सेवा-सत्कार करना भैया, बारम्बार, मेरे प्यारे बोल न झूठ बात-बात में कभी न रूठ । १६ – हित- शिक्षा मुक्ति, द्रव्य, त्याग, न्याय, धान्य । अर्हत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय ॥ प्रतिक्रमण, प्रायश्चित्त, सत्यव्रत, तीर्थकर । जीवों की रक्षा करो। धर्म सार वस्तु है । आलस्य छोड़ कर विद्या पढ़ो। लक्ष्मी का दान दो। हम गुण पूजक हैं। हम आत्मा हैं। सबकी आत्मा समान है। उपाश्रय में जाओ। मुनि दर्शन करो । व्याख्यान सुनो। सब से प्यार करो । आरोग्यता के वास्ते कसरत करो तथा मेहनत का सय काम हाथों से करो । पुस्तक पढ़ो। खच्छता रक्खो | जयजिनेन्द्र कहो । जैनधर्म अच्छा है ।
SR No.010061
Book TitleJain Shiksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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