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________________ पूज्य ताऊजी, ही हमारे सब कुछ थे। हमने अपने पिता के दर्शन भी नही किए वे छोटी श्रायु में ही हम सब चालको को छोड़कर स्वर्गं मिधार गए। हमारी माता असहाय थी । उसकी देखरेख और व्यवस्था का कोई साधन न था । परतु ईश्वर की कृपा से हमें इस बात का ऊपर किसी की छत्रछाया नहीं है। हमारा पालन पोपन, उत्तम रीति से किया जिसके कारण हम सब सुखी है और हृदय में विद्यमान रहेगी। हमारा उनके चरणो मे वारम्बार कभी अनुभव नही हुआ । कि हमारे शिक्षा और विवाह का कार्य अत्यन सदैव उनकी पावन स्मृति हमारे नमस्कार हो । श्रमादेवी, संतोषकुमारी, त्रिशलादेवी (तीनो छोटे भाई की पुत्रियाँ) स्नेहशील महापुरुष भाई तनसुखराय हमारे ऐसे साथियो मे से ये जिन्हे देश, धर्मं मोर समाजकी सेवा मे Est आनद आता था । धार्मिक कार्यों में नर्वानता यावे समाज प्रभावशाली बने । रात दिन इस बात का ध्यान रखते थे । तीस वर्ष से हमारा उनका भाई जैसा सम्बन्ध था । पूज्य वर्णाजी के अनन्यभक्त थे । देश धर्म और समाज के सच्चे सेवक थे । सुधार वादी दष्टिकोण रखते थे । निर्भीक साहसी और स्पष्ट वादी समाज के कार्यकर्ता थे । उनके प्रभाव से समाज का एक तेजस्वी कार्यकर्ता चला गया जिसकी निकट भविष्य मे पूर्ति होनी कठिन है। मै उनके प्रति श्रद्धाजलि अर्पित करता हूँ । 1 प्रसिद्ध समाजसेवी, श्रीमंत विद्वान् ला० राजकृष्णजी दरियागंज, दिल्ली ६५ ] श्री शांतिकुमार गोधा डिग्गी हाउस, जयपुर लालाजी वडे सज्जन व स्नेहशील महानुभाव थे । धर्म और मनचाहा विषय था । सामाजिक, धार्मिक व राजनैतिक क्षेत्र मे जो कार्य स्मरणीय रहेगे | मैं उनके प्रति श्रद्धाजलि अर्पित करता हू । 1 देश सेवा करना उनका उन्होने किए है वे सदैव
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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