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________________ श्री किशनलालजो मोडलवस्ती, दिल्ली लालाजी मेरे मामा थे। मुझे यह सौभाग्य प्राप्त हो सका कि में उनकी बीमारी की अवस्था में कुछ सेवा कर सका । इसे मैं अपना अहोभाग्य समझता है। वे एक प्रतिभा-मान्न समाज के नेता थे। जैन समाज शक्तिशाली और गौरवशील वने वे इस वान का सदैव प्रयत्न करते थे । ___ श्रीभगवानदासजी जैन, मोडलबस्ती, दिल्ली श्री शान्तिप्रसादजी जैन, सरिया, विहार हम अपने को वहा भाग्यशाली समझते हैं कि लालाजी की छत्रछाया हमारे ऊपर रही। हमारे जीवन पर उनका बडा प्रभाव है। उदारता, प्रेम और कर्तव्यपरायणता की भावना उनमे अनुपम थी। उन जैसे गुण समाज के युवको मे मा जावें तो हमारा समाज शक्तिशाली वन जाये । श्री कुलभूपणजी रोहतक मेरे पिताजी का स्वर्गवास उस समय हुमा जव में ढाई वर्ष का था। मेरा पालन-पोषण ताऊजी ने किया। उनकी छत्रछाया में मैंने शिक्षा पाई और योग्य हुआ। मैं उनके ऋण से कभी उऋण नही हो सकता। ताऊजी ने धर्म और समाज की तो सेवा की ही उन्होंने परिवार की भी बहुत उत्तम रीति से सेवा की। यह हमारा सौभाग्य है कि हमारे परिवार में जन प्रकार के तेजस्वी नररत्न का जन्म हुआ। श्री कलियारामजी दरियागज, दिल्ली लालाजी को मैं अपने बड़े भाई के समान मानता है वे मेरे प्रत्यत निकट थे। मेरे दुख सुख के साथी थे। सदा मेरे मार्गदर्शक और सलाहगीर थे। उनके प्रभाव में मै अपने को असहाय अनुभव करता हूँ। सामाजिक कार्यों के करने मे उन्हे बड़ा उत्माह रहता था । जिमी बदले की इच्छा के विना परोपकार की भावना थी। उनका सिद्धात या 'नेसी कार परिया में डाल'। श्री विद्यायती. स्वारानी (दोनो पुनिया) पिताजी का हमारे ऊपर अपरिमित स्नेह पा। उन्होंने हमें मनी प्रगर योग्य बनाया। वे हमारी उन्नति का सदेव ध्यान रखते थे। प्रतियि सवार, नेवा मारमा चार वटी का सम्मान प्रादि गुण उनमे चूट-कूट कर भरे थे। बाहर में पान धारिया और कार्यकर्तामो का जब भी घर पर ग्राना होता उनी गरगा लिए पीने पौर अपने को धन्य समभते उन्होंने मेवा को कभी भी कर गन्ना ही घर स्वर्ग बन जाता है। ऐसे मनुष्य रत्न को हमारा उनी गमों में गम्य ।
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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