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________________ सिरोही स्टेट द्वारा लगाए गए प्रति भयानक धर्मघातक कलको टैक्स को देख कर आपकी आत्मा छटपटा उठी और वहा से आते ही आपने आवू टॅक्म के लगने से होने वाले जातीय अपमान का बदला लेने की गरज से हिन्दू तथा जैन समाज को साथ लेकर सिरोही राज्य से भिडने को प्रस्तुत हुए । जैसी कि लालाजी को हर एक आन्दोलनो मे उन्हें पूरी-पूरी कामयावी हासिल होती रही है। इस प्रान्दोलन में भी सफलता का सेहरा थापके उन्नत मस्तक को सुशोभित करेगा । यदि इस भावू प्रान्दोलन से जैसा कि लालाजी का ख्याल है, समस्त जैन 'टुकडे मिल कर एक हो जाय तो फिर स्वतंत्र भारत मे जैनो को अपमानित करने का होसला किसी भी कोम को न हो सकेगा ।' जन समाज के इस चमकते सितारे पर जैन समाज जितना भी श्रभिमान करे, थोडा होगा । उन्होने समाज का कार्य सेवा-भाव से करने मे कभी मुह नही मोडा । श्राबू मंदिर आन्दोलन की बात है जब कि ला० अप्रैल सन् १९४१ ई० तनसुखरायजी गुरुदेव श्री विजयशान्ति गुरुदेव के दर्शन करने के पश्चात् वे विमलशाह तथा वस्तुपाल सुप्रसिद्ध जैन मन्दिरो के दर्शनार्थं भी गए। लालाजी के श्चर्य का ठिकाना न था जब कि अन्य यात्रियो के साथ उन्हें भी सिरोही स्टेट द्वारा लगाए गए टैक्स का शिकार होना पडा परन्तु जैसे ही वे दिल्ली प्राए इस टैक्स के विरोध में उन्होने समाचारपत्र मे अपने विचार प्रगट किए। लालाजी के इन विचारो से सहमत व्यक्तियो की सख्या वढने लगी और छ महीने तक मित्रो से इसी विषय मे पत्र-व्यवहार होता रहा । नवम्बर, १९४९ ई० में सम्पादक श्री चिमनसिहजी लोढा का व्यावर से एक पत्र मिला जिसमे सम्पूर्ण परिस्थिति पर विचार करने के लिए कार्यकर्ता सम्मेलन बुलाने का परामर्श दिया गया था । अन्त मे अखिल भारतीय श्रावू मन्दिर टॅक्स विरोधी काफ्रेंस कर व्यावर मे करने का निश्चय किया । और लाला तनसुखरायजी को उसका अध्यक्ष चुना गया । लालाजी के सभापतित्व मे यह कान्फेस बहुत सफल हुई । इस श्रान्दोलन की आवश्यकता इस कान्फ्रेंस के अवसर पर देश के कोने-कोने से प्राप्त कुछ सदेश-पत्रो से भली-भाति विदित है । इन समितियो से यह भी अनुमान लगाया जा सकता है कि लालाजी ने कितने गम्भीर विषय को अपने हाथ मे लिया था । । जी महाराज के दर्शनार्थ श्राबू गये तेजपाल द्वारा निर्माणित देववाडा के श्राबू मन्दिर आन्दोलन सन् १९४३ ई० तक बहुत उग्र रूप में चलता रहा। कई वार डेपुटेशन सिरोही राज्य के अधिकारियो से मिला और समाचारपत्रो मे बहुत समय तक यह चर्चा का विषय वना रहा, परन्तु देशव्यापी अगस्त- प्रान्दोलन के कारण देश की परिस्थिति एकदम चिगढ गई और श्रावू मन्दिर ग्रान्दोलन के प्रधानमत्री चिमनसिंहजी लोढा राज्यवन्दी बनाए गए अत यह प्रान्दोलन देश की विकट परिस्थितियो के कारण इस भ्राशा से कि ज्योही देश का वातावरण सुधरेगा पुनः प्रारम्भ कर दिया जाएगा । ३६ ]
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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