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________________ को आपने बहुत ही खूबी के साथ निभाया । कौन जानता था कि एक खामोश काम करने वाला पादमी देश का इतना उपयोगी सिपाही होगा । काग्रेस के कार्यकर्ताओ ने इनकी शक्ति को जाना, समझा और इसलिए प्रत्येक मीटिंग, जलूस और प्रत्येक मौके पर इनका पूरा उपयोग उठाने लगे। लाहौर मे आल इंडिया काग्रेस का इजलास था। आपको वहा के लिए डेलीगेट चुना गया। यह अधिवेशन नवयुवक हृदय-सम्राट ५० जवाहरलालजी नेहरू के सभापतित्व में हुआ जिसमे जिला रोहतक से ला. तनसुखराय प्रतिनिधि होकर गये। सन् १९२६ मे आपने रोहतक में सूबा किसान कान्फ्रेंस करने का विचार किया और इसके सम्बन्ध के लिए शीघ्र ही एक स्वागतकारिणी समिति का निर्माण किया जिसके आप जनरल सेक्रेटरी थे। सन् १९२६ मे यह कान्फेस देश के प्रसिद्ध नेता श्री अर्जुनलालजी सेठी के सभापतित्व में अपूर्व सफलता के साथ सपन्न हुई। इस कान्फ्रेस के फलस्वरूप इस क्षेत्र मे बहुत ही जागृति हुई। रोहतक जिले के कार्यकर्तामो की मीटिंग हुई कि जिले मे कैसे काम किया जाय । आपने कहा कि मैं तो एक खामोश सिपाही की तरह काम कर सकता है, जो भी जिम्मेदारी मुझे देना चाहं दे सकते है। इस पर इनको आन्दोलन मे ठहरने का प्रबन्ध, भोजन, वालन्टियरो के जुलूस व वालन्टियरो का तैयार करना, मीटिंग और जुलूसो का प्रबन्ध करने की जिम्मेवारी दी गयी। आन्दोलन जोरो के साथ आरम्भ हुआ। रोहतक जिले में गिरफ्तारिया होना शुरू हुई। रोहतक जिले में मुख्य-मुख्य कार्यकर्ता गिरफ्तार होने लगे । सैकडो वालन्टियर्स गिरफ्तार हुए। गवर्नमेट ने काग्रेस के कार्यकर्ताओ को गिरफ्तार करने मे पूरी शक्ति लगाई। परन्तु काग्रेस का काम जारी रहा, जरा शिथिलता नही आई । प्रत्येक पदाधिकारी प्रसमजस मै था कि काग्रेस की मशीनरी किस तरह धूम रही है । अगुआ सब गिरफ्तार कर लिए । अत में सूझी कि इस काम की बागडोर जिनके हाथ मे है उन्हे कैसे गिरफ्तार किया जाए । गिरफ्तारी के लिए कोई कानून लागू नही हो सकता था। तो भी दफा १०८ मे गिरफ्तार कर लिए गए। यह दफा आमतौर पर भापण देने वालो पर लगा करती है । लाला तनसुखराय जैसे खामोश कार्यकर्ताओ पर नही । उस आन्दोलन मे प्लेटफार्म पर एक शब्द भी न बोलने की शपथ ली हुई थी । खैर, ऐसे समय पूछता कौन है ? इधर इनको भी कुछ जेल का डर नही था। नौ महीने जेल काटकर मार्च सन् १९३१ मे घर वापिस लौटे । जेल से आते ही आपसे चुप बैठते न रहा गया। हरिजन पाश्रम की स्थापना भारत में सबसे पहले अपने नगर मे हरिजन उद्धार का बीणा उठाया। मापन अपने ही विश्वास पर हरिजन विद्यार्थी आश्रम की रोहतक मे स्थापना की। पाश्रम का सारा खर्च आप अपनी तरफ से ही करते थे। आपके दिन-रात परिश्रम से अल्पकाल मे आश्रम ने अच्छी २६]
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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