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________________ एजेन्सी आपको मिल गई। अपनी कार्यकुशलता और परिश्रम के बल पर आपने कम्पनी को इतना कार्य दिया कि शीघ्र ही आप एक एजेण्ट से डिस्ट्रिक्ट आर्गनाइजर बन गये। आपके मन में विश्वास पैदा हो गया था कि बीमा एक ऐसा कार्य है जहाँ स्वतन्त्र रहता हुमा आवमी राष्ट्र की गुरुतर सेवा कर सकता है। और यदि परिश्रम से इस क्षेत्र में कदम बढाया तो लक्ष्मी पर पूजती है। लाला तनसुखराय जैन के पौरुप और प्रतिभा से वीमे का व्यापार इसलिए चमक उठा चुकि इनके सादा रहन-सहन एव छलछिद्र रहित जीवन की गहरी छाप दूसरो पर पड़ी। शुरू से ही इनकी प्रवृत्ति दूसरो से भिन्न रही है जव कि दूसरे वीमा एजेण्ट पान सिगरेट और चाय के व्यसन को अपने व्यापार की सफलता की कुजी मानते हैं। तव उमके विपरीत तनसुखरायजी का यह विचार रहा है कि पान, सिगरेट, चाय जैसी नशीली चीजो के बजाय त्यागमय जीवन का असर दूसरो पर अधिक पड़ता है। इसलिए पाप पान, सिगरेट, चाय आदि से दूर रहे। फलस्वरूप प्राप के पद की दिनोदिन उन्नति होती रही। लक्ष्मी बीमा कम्पनी में प्रवेश उन्ही दिनो देश के कर्णधार प० मोतीलालजी नेहरू और पनाबकेसरी ला० लाजपतरायजी ने के० सन्तानम् के सहयोग से राष्ट्रीय कार्यकर्ताओ की वेरोजगारी के प्रश्न को हल करने के लिए लक्ष्मी इश्योरेन्स कम्पनी को जन्म दिया। प्राग वस्त्रो की कितनी ही तहो मे भी छिप नही सकती। लक्ष्मी इन्श्योरेन्स के कार्यकर्तामो की दृष्टि भी एक कोने में बैठे हुए लाला तनसुखरायजी पर पड़ी। राष्ट्र-सेवा की भावना से प्राकृष्ट होकर आप भारत बीमा कम्पनी को छोडकर लक्ष्मी बीमा कम्पनी में चले गये । आपकी पूर्ण सफलता का अनुमान इसीसे लगाया जा सकता है कि एव वर्ष के अन्दर ही लक्ष्मी को देहली जैसी बड़ी ब्राच पास होते हुए भी आपके लिए रोहतक मे अलग वाच खोलनी पड़ी। - दो वर्ष कार्य करने के बाद ही रोहतक बाब का कार्य इतना सतोपजनक हुआ कि आपको देहली बाच का सेक्रेटरी बनाकर भेज दिया । लेकिन वाह रे तनसुखराय तीन वर्ष के अल्प काल मे ही देहली बाच ने इतना कार्य किया जितना एक छोटी-मोटी कम्पनी करती है। और उसका पोसत चौगुने विजनेस का हो गया । तनसुखराय का नाम बीमे के व्यापार में सूर्य की तरह चमक उठा । और लक्ष्मी का नाम तनसुखराय के नाम के साथ मत्यी होगया। बीमे के काम के साथ राष्ट्र का काम न किया हो, यह वात नही है । आपने अपने वीमे व्यवसाय को चालू रखते हुए सन् १९२६ मे जिला रोहतक मे जबकि प्रान्तीय मजदूर-किसान कान्स हुई उस समय आप उसकी स्वागतकारिणी के जनरल सेक्रेटरी बनाये गये । जिस पद [२५
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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